बिक्री नियोजन मार्केटिंग (Sales Planning & Marketing )

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उद्योजक का उद्योग शुरु करने के पीछे का मूल उद्देश्य मतलब प्रॉफीट (नफा) प्राप्त करना । इस उद्देश्य में सफल होने के लिए अपना उत्पादनं विविध मार्ग से बिक्री करना यह उसका महत्वपूर्ण भाग हैं।

 गुणात्मकता से परिपूर्ण उत्पादन होकर भी विक्री व्यवस्थापन ठीक, सुनियोजित न हो तो उच्च प्रति का (स्तरीय) उत्पादन होकर भी उसकी बिक्री नहीं होती । उत्पादक के पास यदि खुद का ही अच्छा-बिक्री कौशल हो तो उसका बिक्री उद्देश्य पूरा होने में उसे दिक्कत नहीं आती। उसका उद्देश्य, उसका लक्ष्य उसके सामने होता हैं।

 अपना लक्ष्य पूरा करने के लिए प्रयत्नों की कला यदि उसे खुद को आत्मसात हों तो बिक्री व्यवस्थापन में से अन्य व्यावसायिक माध्यमों पर उसे निर्भररहना नहीं पड़ता । इसके लिए व्यवसाय का चयन करने के बाद व्यावसायिक तांत्रिक बातों का प्रशिक्षण यदि नवउद्योजक ने लिया हो तो उसके साथ ही बिक्री तंत्र भी आत्मसात करके लिजिए ।

व्यावसायिक स्पर्धा के बाजार में यदि आपको बिक्री तंत्र, कौशल आत्मसात हो तो अन्य स्पर्धक उत्पादनों की तुलना में अपना उत्पादन लेकर बाजार में बिक्री की स्पर्धा में बड़ी प्रगति कर सकेंगे।

 आज के स्पर्धा के युग में जिसके पास बिक्री कौशल्य है, जिन्हें मार्केटिंग का ज्ञान हैं । ऐसे बिक्री प्रतिनिधियों को बड़ी-बड़ी कंपनियाँ आज अच्छासा वेतन देती हैं। समाचारपत्र में भी आप देखते होंगे कि- ‘बिक्री प्रतिनिधि चाहिए’, ‘सेल्समन चाहिए, ‘सेल्स एक्झिक्युटीव्हज् चाहिए’ ऐसे अनेक विज्ञापन हम देखते हैं।

इस पद्धति की नौकरियाँ उपलब्ध होती हैं, लेकिन उसके लिए लगनेवाला प्रशिक्षित वर्ग नहीं मिलता। सिर्फ दसवीं-बारहवीं उतीर्ण होनेवाले परंतु मार्केटिंग का ज्ञान होनेवाले लोगों को कंपनियाँ जो माँगे वह वेतन देती हैं।

 उद्योग- व्यवसाय शुरु करने की सबकी इच्छा होती हैं। बिझनेसमन बनें ऐसा सबको लगता हैं। हर घर के बेरोजगार महिला-पुरुष कुछ तो व्यवसाय शुरु करें इस विचार में होते हैं। लेकिन सबकी ही मार्केटींग करने की इच्छा नहीं होती।ऐसा कैसे संभव हैं? आप उद्योग शुरु करेंगे, उत्पादनं शुरु करेंगे, परंतु उसकी बिक्री करना, मार्केटिंग करना इन बातों के लिए आप तैयार नहीं होते।

 मार्केटिंग नहीं ऐसा उद्योग ही नहीं। मार्केटिंग का डर लगता हो, मार्केटींग करना न आता हो तो ऐसे लोगों को उद्योग व्यवसाय शुरु ही नहीं करना चाहिए । कारण मार्केटींग किए बिना उत्पादन की बिक्री नहीं होगी, और उत्पादित वस्तु की बिक्री नहीं की तो नफा प्राप्त करने का आपका उद्देश्य सफल नहीं होगा। उद्योजक होना हो तो मार्केटिंग की कला आत्मसात करके ही लेनी चाहिए।

 आप बिक्री करने के लिए मत जाओ। लेकिन उसकी वितरण प्रणाली की तो व्यवस्था आपको करनी चाहिए। ऐसी एक कहावत हैं की छह महीने डोअर मार्केटींग का अनुभव होनेवाला मनुष्य संसार में कहीं भी भूखा नहीं मरता।

आपने उत्पादन के लिए कौन-सा बाजार उचित समझा हैं, उसका ग्राहक कहाँ हैं? ग्राहक तक अपना उत्पादनं कैसे पहुँचाये, कम से कम कीमत में उच्च दर्जे का माल हम उन्हें कैसे दे सकते हैं, इसका पूर्णतः अध्ययन करके ही उत्पादन की शुरुवात करनी चाहिए ।

 मार्केटींग का कुछ भी ज्ञान नहीं हैं और हमने यदि उत्पादन शुरु किया तो उत्पादित माल के बिक्री का बहुत बड़ा प्रश्न निर्माण होगा।

 माल का उत्पादन शुरु होने से पहले उसके सिर्फ सँपल्स तैयार करके बाजार में मुफ्त बाटकर ग्राहकों की प्रतिक्रियाएँ लेनी पड़ती हैं। अपना माल, अपना उत्पादन, अपना फॉर्मुला, ग्राहको को पसंद आता हैं या नहीं इसका अंदाजा लेने के लिए फ्री संपल्स बाँटकर ग्राहकों की प्रतिक्रिया लेना अच्छा होता हैं।

 ग्राहकों ने सुझाये हुए बदल स्विकारने पड़ते हैं। ग्राहकों की माँग के अनुसार आपके उत्पादन का जायका, फॉर्मुला, पैकींग बदलना पड़ता हो तो बदलो। ग्राहकों को सस्ती पड़े ऐसी कीमत में उत्पादनो का पैकींग्ज करना चाहिए ।

 निश्चित एक वर्ग के ग्राहक को नजर के सामने ना रखते हुए, सभी उम्र के ग्राहकों को नजर के सामने रखते हुए बाजार के सभी ही ग्राहक, सभी उम्र के ग्राहकों को, भानेवाला, पसंद पड़नेवाला उत्पादनं – सभी ग्राहकों को उस उत्पादन की कीमत, वजन, पैकींग योग्य लगें ऐसे उत्पादनं बाजार में लाईए।

 गरीब, अमीर, अत्यंत अमीर, मध्यमवर्गीय ऐसे सभी स्तर के लोगों को पसंद आयेगा ऐसे उत्पादन की निर्मिती कीजिए।

 निश्चित एक ही स्तर के ग्राहक को नजर के सामने रखके जब हम उद्योग शुरु करते हैं तब हमारा ग्राहकवर्ग सीमित रहता हैं और यदि उस वर्ग के ग्राहकों को हमारा उत्पादन पसंद नहीं पड़ता तो हमारा उद्योग और हमारे उत्पादन का भविष्य खत्म होता हैं।

 इसके लिए बाजार में प्रत्यक्ष घूमकर बाजार के हर स्तर के ग्राहक की पसंद, माँग, इसका संशोधन करो। अन्य स्पर्धक उत्पादनों की किमतें कितनी हैं, पैकींग कैसे हैं इसका अध्ययन करके उससे भी अच्छे स्तर का उत्पादन आप बनाकर उससे भी कम कीमत में बाजार में लाईए ।

 निश्चित सफलता का मंत्र है।”अच्छे से अच्छा, गुणवत्तापूर्ण उत्पादन कम-से-कम कीमत में ग्राहकों को उपलब्ध करके दो भविष्यकालीन उत्पादन और उसका संचय इसके लिए बिक्री-संशोधन कीजिए। हमने कितना माल उत्पादित किया, उनमें से होलसेल विक्रेताओं को कितना बेचा, ! विक्रेताओं ने कितनी खरीदी की इसका हिसाब रखना । कौन-कौन से रिटेल काऊंटर्स को आपने कितना स्टॉक दिया था।

 एक महीने के बाद इन सबके स्टॉक का लेखा- जोखा लिजीए । एक महीना पहले उन्होनें कितना स्टॉक खरीद लिया था और आज उनके पास कितना स्टॉक बाकी हैं इसका लेखा-जोखा लेने के बाद एक महीन में कौन- से काउंटर को कितनी बिक्री हुई इसका अंदाजा आयेगा इसी कारण हम अगले वितरण नियोजन के लिए कितना उत्पादनं तैयार रखेंगे यह समझेगा ।

 हमने उत्पादीतं किया हुआ माल नाशवंत हो तो बिक्री से अधिक उत्पादनं करके रखेंगे तो वह माल खराब होकर नुकसान होने की संभावना होती है । विक्रेताने, होलसेलरने, स्टॉकीस्टने आर्डर करने के साथ उसे आपूर्ति करने आएँ इस दृष्टी से उत्पादन का नियोजन करने के लिए विक्री- संशोधन होना जरुरी है। माल का वितरण प्रमाण से अधिक मत करो।

 विक्री की जो गति होगी उसके अधिक-से-अधिक दोगुना स्टॉक विक्री के लिए बाजार में रखो। प्रमाण से अधिक स्टॉक बाजारा में यदि करके रखेंगे, तो उस माल की विक्री होने तक आपको व्यापारियों से ऑर्डर मिलेगा नहीं। परिणामतः उत्पादन विभाग बंद-शुरु रखना पड़ेगा।

 उत्पादन कभी बंद तो कभी शुरु ऐसा हुआ तो मजदूरों को काम न करते हुए भी वेतन देना पड़ेगा । अथवा मजदूरों को छुट्टी देनी पड़ेगी। अनियमित रोजगार आपके पास उपलब्ध हो तो मजदूर वर्ग काम छोडकर दूसरी नौकरी की ओर जायेगा ।

व्यवसाय का और उत्पादन का प्रमाण, कार्यक्षेत्र इसपर बिक्री की पद्धतियाँ तय होती हैं। उद्योग- गृहोउद्योग के रुप में शुरु किया हो तो उसके लिए संभवतः डोअर मार्केटींग और रिटेल मार्केटींग यह पद्धतियाँ अवलंबनी चाहिए। उद्योग की शुरुवात लघुउद्योग के रुप में की हो तो माल का वितरण उत्पादन से खुद व्यापारी की ओर जाकर रिटेल मार्केटींग के काउंटर को बिक्री के लिए रखीए ।

 उत्पादन का प्रमाण अधिक हो, बिक्री का उद्देश्य बड़ा हो तो डोअर-मार्केटींग, रिटेल मार्केटींग, होलसेल मार्केटींग, सुपर स्टॉकिस्ट सभी वितरण माध्यमों को माल देकर अपना बिक्री उद्देश्य पूरा कीजिए।

 आपका बिक्री उद्देश्य तय करने के लिए अलग-अलग उपायों का अवलंब करना चाहिए। बाजार के स्पर्धक उत्पादनों में अपना उत्पादन सफल उद्योग और बिक्री हो इसके लिए बाजार का संशोधन, ग्राहक संशोधन कीजिए ।

 पाश्चात्य देशों जैसा भारत में भी बाजार का संशोधन करनेवाली, नया उत्पादन मार्केट मे ठीक ढंग से लाँचींग करके देनेवाली फर्मस और संस्थाएँ हैं।

 उनकी मार्केटींग टीम की ओर से मार्केट रिसर्च करके ले सकते हैं। बाजार का आप बारीकी से निरीक्षण करके, चतुरता से, होशियारी से स्पर्धक उत्पादकों के वितरण प्रणाली में कमियाँ ढूँढीएँ ।

 प्रत्यक्ष ग्राहकों तक माल पहुंचाते वक्त प्रत्यक्ष माल कितने मध्यस्थ माध्यमों की ओर से वितरीत होकर ग्राहकों तक पहुंचता है, यह देखो। उत्पादकों का माल उत्पादन होने पर वह माल पहले कौन खरीदता है यह देखो।

 माल स्टॉकीस्ट को ओर जाताहो तो कंपनी बड़ा स्टॉक खरीदने वाले को बिक्री कीमत के कितना प्रतिशत कम ‘मार्जिन में माल देती हैं यह देखो। स्टॉकीस्ट खुद का कितना मार्जिन रखकर होलसेलर को माल देते हैं, होलसेलर रिटेल विक्रेता को किस किमत में माल देता हैं, फिर रिटेलर ने ग्राहक को वह उत्पादनं बेचने के बाद उसको कितना प्रॉफिट मार्जिन’ मिलता हैं इसका गहराई से अध्ययन करके उत्पादनं नये से बाजार में लाँचींग करते वक्त इन बीच के वितरण प्रणालीयों को अन्य उत्पादकों से थोड़ा-थोड़ा अधिक मार्जिन दिजिए।

आपके उत्पादन का बाजार में स्थान पक्का होने तक आपको थोड़ा कम मार्जिन मिला तो कोई हर्ज नहीं।विक्री का तंत्र समझ लेने के लिए विक्रेताओं से प्रत्यक्ष मुलाकात करने के लिए जाओ। उनके मत, सूचनाएँ, मांगे जान लो ।

बिक्री व्यवस्थापन की सभी बारीकियाँ नजदीक से देखो। प्रत्यक्ष अनुभव के लिए आपका उत्पादन आप खुद विक्रेताओं तक लेकर जाओ। आपका उत्पादन और अन्य उत्पादन में क्या फर्क हैं इसका प्रात्यक्षिक उन्हें दिखाओ। दूसरे उत्पादकों की माल की अपेक्षा आपका उत्पादनं यदि रिटेलरने अपने काऊंटर को बेचा तो उसे अन्यों की अपेक्षा कितना प्रॉफीट (नफा) मिलनेवाला हैं इसकी जानकारी दो।

 बिक्री वृद्धि के लिए अलग-अलग स्कीम्स, तरीके अपनाओं फलाना इतना माल खरीदं करनेवाले को गिफ्ट व्हाउचर्स, नगद इनाम, इनाम, स्पर्धा योजना, इतना माल खरीदं लिया तो इतना फ्री-जैसे तीन खरीद लो तो एक मुफ्त पाओ। इस प्रकार की स्कीमस लगाओ। छोटे-बड़ी खेल की स्पर्धाएँ, सांस्कृतिक कार्यक्रमों का प्रायोजकत्व स्वीकारना यह आसान और कम खर्चेका पर्याय (विकल्प) हैं।

 किसी खेल की स्पर्धा के प्रायोजक बनो। मैदान के आसपास अपना विज्ञापन करो, बैनर लगाओ, ‘इलेक्ट्रॉनिक्स अँड बोर्ड से संभव हो तो वैसा विज्ञापन करो। झंडे, बैनर, फलक, बोर्ड, हँडबील, सैंपल्स बाँटना इन संभव माध्यमों से भीड में अपना विज्ञापन करो । आपका उत्पादन, आपका ब्रैन्ड क्या हैं यह लोगों को समझने दो । अच्छे गुणी खिलाड़ी, कलाकारों को स्पॉन्सर करो। उनका स्पॉन्सर हो जाओ।

 उन्हें कपड़े और अन्य सुविधाएँ देते वक्त उनके हर चीज पर दर्शनी स्थान पर आपका विज्ञापन करना, ऐसे कार्यक्रमो को लोगों के मिलनेवाले सहभाग के कारण आपका ब्रेन्ड कम समय में प्रसिद्ध होने के लिए मदद मिलेगी।

अच्छे कार्यक्रमो का, स्पर्धाओं का आयोजन करने के कारण, प्रायोजकत्व स्वीकारने के कारण आपके ब्रैन्ड को, आपको, आपके उत्पादन को समाज में स्थान मिलेगा, आपका ‘लोगो’, आपका उत्पादनं अत्यंत कम समय में प्रसिद्धी के शिखर पर पहुंचेगा। थम्स-अप, कोकाकोला, हीरो होंडा, रिलायन्स, सहारा, टाटा, आयडीया ग्रुप, महींद्रा, बजाज ऐसी भारतीय ब्रेन्ड उत्पादने इसके लिए अच्छे उदाहरण हैं ।

 इस उत्पादनों के नाम मालूम नहीं हैं ऐसा ग्राहक भारतीय बाजार में मिलेगा नहीं, बिक्री करने की विविध पद्धतियाँ और पर्याय उपलब्ध होते हैं । उत्पादक ने कौन-सा पर्याय चुनने का यह उसे अध्ययन करके तय करना होता हैं। आपको बिक्री के कौन-कौन से पर्याय मालूम हैं? आप आपके माल की बिक्री कैसे करोगे यह तय करों डोअर मार्केटींग माध्यम से उत्पादन बेचने का, होलसेल द्वारा वितरण लगाने का इनमें से क्या ? यह निश्चित करो ।

 उत्पादन की शुरुवात होने के बाद मार्केटींग का ज्ञान आपको, खुद हो तो अपना उत्पादन और कौशल लेकर बाजार में खुद प्रवेश करो। सरकरी यंत्रणा की ओर से बिक्री के लिए प्रयत्न करना हो तो राज्य लघुउद्योग महामंडल इनके बिक्री यंत्रणा के द्वारा लघुउद्योजकों की ओर से उत्पादीत किये हुए माल की खरेदी सरकार भी करती हैं।

 किसी भी उद्योजक ने अपने उत्पादन की बिक्री करने के लिए खुद प्रयत्न करने के बाद उसे सफलता मिलती ही है। लेकीन उसे बिक्री का बड़ा अनुभव भी मिलता हैं।

 बिक्री मतलब क्या? बिक्री करते वक्त क्या अडचनें, समस्याएँ आती हैं इसका ज्ञान उसे खुद को होता हैं । इसी कारण बिक्री व्यवस्थापन के मनुष्यबल से और अन्य माध्यमों से वह सकारात्मक विचारों से सामना करता हैं ।

 खुद मार्केटींग करने के अनुभव के कारण मार्केटींग करते वक्त जहाँ जैसे जितने लोग मिलें, जितने व्यक्तिमत्व आपके संपर्क में आयें, अलग-अलग, विविध स्वभाव धर्म के लोगों से संपर्क आने के कारण उद्योजक उसके भावी जीवन में, उद्योग-व्यवसाय में संपर्क में आनेवाले असंख्य व्यक्तिमत्वों से संयम से, सहनशीलता से बर्ताव कर सकते हैं।

 स्वभाव धर्मों का अध्ययन कर सकते हैं। जग क्या हैं, लोग क्या हैं, व्यापार क्या हैं, लोगों के स्वभाव कैसे हैं, अपना स्वभाव कैसा हैं यह पहचान सकते हैं। हजारों लोगों के हजारों स्वभाव होते हैं और वे हम बदल नहीं सकते। इसी कारण जहाँ जरुरत हो वहाँ हम ही अपना स्वभाव बदलकर अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए लोगों के सम्मुख जा सकते हैं।

डोअर मार्केटींग :

उत्पादन की बिक्री खुद करने का नियोजन किया हुआ हो तो उसके लिए आपके पास दूसरों से बोलने का स्वभाव, वाक्चतुरता और संयमी, प्रयत्नशीलता इन गुणों की आवश्यकता हैं । वाचाल व्यक्तिमत्व के, हँसमुख स्वभाव के, चैतनशील, तरोताजा रहनेवाले व्यक्ति मार्केट में अपना खुद का स्थान निर्माण कर सकते हैं।

 दस घरों में जानकारी देकर, उत्पादन दिखाकर भी जो व्यक्ति न थकते हुए अगले घर में उत्पादन की जानकारी देने के लिए जाते हैं वह व्यक्ति निश्चित ही मार्केट में सफल होते हैं । अपना उत्पादन यदि व्यापारी, वितरक खरीदने के लिए इच्छुक न हो तो डोअर मार्केटींग के तंत्र को अपनाओ खुद का अपना उत्पादन लेकर ग्राहकों तक जाओ।

आपका उत्पादन, माल ग्राहकों तक पहुँचाने के लिए, व्यापारियों से उचित प्रतिसाद मिलता न हो तो आप अपना उत्पादन खुद ग्राहकों तक पहुँचाओ। उत्पादन किए हुए अपने माल की, वस्तु की जल्दी प्रसिद्धी होने के लिए विज्ञापन पर खर्चा न करते भी उसकी बिक्री होने के लिए, माल की पब्लिसीटी न होते हुए भी वह उत्पादन ग्राहकों को अनुभवने के लिए, माल की बिक्री वृद्धि के लिए सबसे आसान, सबसे सस्ता, नजदीक का, वह भी प्रभावी मार्ग मतलब, आप अपना उत्पादन लेकर खुद की ग्राहकों तक जाना मतलब डोअर मार्केटींग सिस्टम का उपयोग करना हैं।

उत्पादन का मार्केट में लाँचिंग, प्रोडक्ट मार्केट में ठीक तरह से लाँच होने के लिए कुछ प्रोफेशनल मार्केटींग टीमें कार्यशील हैं। उनकी मदद लो। उस मार्केटींग टीम के साथ उसके टीम लीडर के साथ आप खुद मार्केटींग का प्रत्यक्ष अनुभव लिजीए, अनुभव लेने के लिए उनके साथ जाओ।

 यदि मार्केटींग डोअर मार्केटींग का करना हो तो वेतन पर प्रतिनिधी नियुक्त करो। उनका एक लीडर नियुक्त करो। उनसे काम करवाकर लो।

 वेतन के साथ उन्हें प्रोत्साहन मिलें इसलिए बिक्री उद्देश्य पूर्ण करनेवाले को इंन्सेंटीव्ह दो । बक्षीश दो। आपके उत्पादन की बिक्री बढ़ेगी। आपके मार्केटींग प्रतिनिधीयों ने, आप खुद ने यदि आपका उत्पादन ग्राहकों के घर- घर पहुंचा दिया तो आपको व्यापारी, वितरकों पर निर्भर रहना नहीं पड़ेगा।

आपका ब्रैन्ड डायरेक्ट ग्राहक नाम लेकर माँगने लगेगा तब वितरक, व्यापारी ही आपको माल दो’ कहते हुए ढूँढ़ते हुए आयेगा।

 बाजार में प्रवेश करने का यह सबसे मेहनत का लेकिन सबसे आसान और प्रभावी मार्ग हैं। इस व्यवस्थापन में रोज कितने माल की बिक्री होती हैं, यह रोज ही समझ में आने से रोज जितने माल की बिक्री होगी उतना ही उत्पादन करने से उत्पादीत माल का कहीं भी नुकसान होने की संभावना नहीं होती। आपको खुद को मार्केटींग नहीं आयेगा तो कुछ मार्केटींग टीमें नियुक्त करो ।

 उनपर नियंत्रण रखने के लिए टीमलीडर्स नियुक्त करो और उन्हें डायरेक्ट डोअर मार्केटींग को भेजो। इस बिक्री प्रणाली में एक फायदा होता हैं वह मतलब हम खुद ही उत्पादक होने से, खुद ही विक्रेता बनने से स्टॉकीस्ट, होलसेलर, रिटेलर, उन्हे देना पड़ रहा प्रॉफीट मार्जिन देना न पड़ने से अपना माल थोड़ा-सा सस्ता भी बेच सकते हैं । माल थोड़ा-सस्ता बेचने से बिक्री बढ़ती हैं। बिक्री से नगद रकम जमा होती हैं। उधार का झंझट नहीं रहता ।

 माल बेचकर आई हुई रकम नगद होने से वहीं रकम फिर धंधे में, कच्चे माल वगैरा के लिए लगा सकते हैं। इसी कारण धीरे-धीरे भांडवल बढ़ता जाता हैं। बिक्री से आया हुआ नफा मूल भांडवल में ही लगाने से भांडवल का भांडार बढ़ता जाता हैं । उत्पादक से ग्राहक ऐसा उत्पादीत माल सीधा ग्राहकों तक पहुँचने के कारण ग्राहकों को आपका उत्पादन सुस्थिति में, फ्रेश और सस्ता बेच सकते हैं।

अच्छा माल और वह भी द्वार पर आया और सस्ता भी मिल रहा हैं इसलिए ग्राहक भी खरीद लेता है। व्यवसाय में सफलता पाने का यह नियम और शास्त्र हैं कि अधिक से अधिक अच्छा माल ग्राहक के माँगने पर दो और वह सस्ता भी दो ज्यादा प्रॉफीट, पाने के लिए ज्यादा बेचो लेकीन सस्ता बेचो ।

 ग्राहकों की माँग को, सूचनाओं को प्रतिसाद दो । एक बार ही माल बेचना यह उद्देश्य न रखते हुए, एक ही ग्राहक को वह माल बार बार खरीदने के लिए विवश करो। आपके उत्पादन की उसे आदत लगाओ संक्षेप में उदाहरण देना हो तो बीड़ी पीने की एक आदत होती हैं।

 वैसी ही आपके उत्पादन के बारे में ग्राहकों को आदत लगाओ। मतलब ग्राहक को बीड़ी-सिगार उत्पादन बेचों ऐसा नहीं । संभवतः बुरीआदत लगानेवाली समाज-विघातक उत्पादने तैयार मत करो।

रिटेल मार्केटींग:

चैतन्यशील व्यक्तिमत्व के बेरोजगार युवकों के लिए बिक्री -प्रतिनिधी होना यह अत्यंत अच्छा पर्याय (विकल्प) हैं । वाचाल स्वभाव के हसमुख व्यक्तिमत्व के, तरोताजा युवकों को बिक्री श्रेत्र में करिअर करने का आज बहुत बड़ा मौका हैं । थोड़ी-  सी मेहनत करने की तैयारी और कुछ तो करने की जिद होनेवाले युवकों को बिक्री- प्रतिनिधी क्षेत्र में अपना करिअर करने का निर्णय हो तो आज इस क्षेत्र की सभी मल्टीनॅशनल कंपनियों के द्वार उनके लिए खुले हैं।

 ऐसे जिद्दी युवकों को आज बाजार की बिक्री स्पर्धा के कारण बहुराष्ट्रीय कंपनियों की ओर से अपने उत्पादन की मार्केटींग के लिए बहुत माँग हैं। अत्यंत कम शिक्षा लिए हुए परंतु बिक्री कौशल होनेवाले व्यक्तियाँ आज कार्पोरेट कंपनियों में बड़े-बड़े वेतन की नौकरियाँ कर रहे हैं। माल का उत्पादन करना वैसे आसान नही हैं । लेकिन उस माल का मार्केटींग करना वैसे बहुत कठिन होता हैं।

 उत्पादन पूर्व बिक्री का नियोजन न करने के कारण माल बेचा नहीं गया तो बिक्री की व्यवस्था न लगाते हुए माल उत्पादीत करने के बाद वह उद्योजक, वह कंपनी नुकसान में आने की संभावना मे होती हैं। इसलिए माल का उत्पादन करने से पहले उसकी बिक्री करने के सब पर्याय (विकल्प) हमारे पास तैयार हो।

‘रिटेल मार्केटींग’ मतलब हमने उत्पादित किया हुआ माल, वस्तू स्टॉकीस्ट होलसेलर्स इनके पास न देते हुए अपनी कंपनी की गाड़ी से सीधा रिटेल काउंटर को देना। होलसेलर्स और स्टॉकीस्ट इन्हें जो मार्जीन देना पड़ता हैं, उससे हमारा छुटकारा होता हैं। इसी कारण सीधे रिटेलर को हम अन्य कंपनियों की अपेक्षा अधिक मार्जिन दे सकते हैं।

कम-अधिक बिक्री होनेवाली शहरी और देहाती विक्रेताओं के पास हम ही माल की डिलीव्हरी देने के कारण कोई भी काउंटर हमारी नजरों से छुटता नहीं। प्रत्येक काउंटर को अपना माल जाता हैं। इसी कारण ग्रामीण और शहरी सभी प्रकार के ग्राहकों तक हमारा माल पहुँचता हैं।

परिणामतः माल की बिक्री और प्रसिद्धी भी होती हैं। प्रत्यक्ष रिटेल विक्रेताओं से हमारी पहचान होती हैं। उनकी अड़चनें समस्याएँ समझती हैं। उनसे ग्राहकों की माँग, बदल और सूचनाएँ समझती हैं।

 बाजार की माँग, स्पर्धा, आपूर्ति, बिक्री इनकी हमें प्रत्यक्ष कल्पना आती हैं। अन्य उत्पादकों के माल को कितनी माँग, कितनी मार्केट हैं और अपने माल को कितना मार्केट हैं इसका अंदाज आता हैं । रिटेल विक्रेता यह प्रत्यक्ष ग्राहकों से संबंध आनेवाला सबसे महत्वपूर्ण माध्यम होता हैं। रिटेल मार्केटींग में अपनी मधुर वाणी से, वाक्चतुरता से रिटेलर का मन जीतना ही पड़ता हैं।

 व्यावसायिक संबंधो के अतिरिक्त उससे गहरी मित्रता के संबंध प्रस्थापित करने पड़ते हैं। बाजार की प्रत्यक्ष गतिविधियाँ, माँग, आपूर्ति, बदल, स्पर्धा इसका अंदाज हमें रिटलर की मित्रता से मिलता हैं। उद्योग-व्यवसाय शुरु करने के बाद उसके उत्पादन और बिक्री इस प्रणाली में रिटेलर यह वैसे हमारा प्रमुख ही होता हैं।

यदि आपने अन्य स्पर्धक उत्पादनों की अपेक्षा उसे थोड़ा अधिक मार्जिन दिया तो आपका उत्पादन बिक्री होने के लिए खुद की शक्ति और कौशल का उपयोग करता हैं।

 उसे मार्जीन अधिक मिलता है इसलिए वह अपने माल की गुणात्मकता , कीमत इसके बारे में लोगों को जानकारी बताता हैं । आपका उत्पादन कैसे अच्छा हैं और वह ग्राहक ने क्यों खरीदना चाहिए इस विषय में उसे कन्वेन्स करता हैं ।

ग्राहक को अपने उत्पादन के बारे में जानकारी देना, उसे अपना उत्पादन खरीदने के लिए उत्तेजीत करना इसके लिए हम उसे मानधन, कमीशन नहीं देते सिर्फ थोड़ासा मार्जीन बढ़ाकर देते हैं ।

 फिर भी अपना उत्पादन उसके काउंटर को अधिक-से-अधिक बिकें, इसके लिए रिटेलर सभी प्रयत्न करता हैं । हम इस दूकान से उस दूकान में माल बेचने के लिए घूमनेवाले होते हैं। परंतु रिटेलर अपने दूकान में खड़े रहकर अपना उत्पादन बेचते-बेचते अपने माल का विज्ञापन करता हैं। संक्षेप में रिटेलर यह हमारा बिना खर्चे का विज्ञापन करता हैं।

 कुछ निश्चित माल पर कुछ माल मुफ्त, फलाना इतनी रकम की खरीदी पर आकर्षक भेटवस्तू बक्षीस ऐसी योजनाएँ ही रिटेलर के लिए शुरु रखिए । रिटेलरो को उनके दुकान में उपयोगी पड़नेवाली ऐसी भेटवस्तूएँ बीच-बीच में देते चलो । जैसे दीवार घड़ी, कैलेंडर्स, बॅटरीज, फायबर के बर्तन, विज्ञापनों के बोर्डस आदि ।

जहाँ से प्रत्यक्ष ग्राहक आपका उत्पादन खरीदने वाला हैं वह स्थान मतलब रिटेल दुकान का काऊंटर और उसका मालिक मतलब रिटलर के रुप में ग्राहक और उत्पादक इनमे से मध्यस्थों को अच्छा सँभालना पड़ता हैं।

होलसेल-मार्केटींग:

अपने व्यवसाय-उद्योग की व्याप्ती कार्यक्षेत्र कितना हैं, उत्पादन और बिक्री का प्रमाण कितना हैं यह देखकर ही होलसेल मार्केटींग करना हैं या नहीं यह तय करना चाहिए उद्योग में लगाई हुई रकम बड़े प्रमाण में हो, उत्पादन की व्याप्ती विस्तृत हो, उत्पादन की व्याप्ती के अनुसार बिक्री का भी उद्देश्य बड़ा होना चाहिए, इसी कारण बिक्री का उद्देश्य बड़ा हो तो हमें होलसेल मार्केटींग करना ही सबसे अच्छा हैं । लेकीन महत्वपूर्ण बात मतलब माल क्रेडीट पर देना पड़ता हैं।

 होलसेल व्यापारियों ने अपने से माल खरीदं करनेवाले रिटेल व्यापारियों को भी क्रेडीट पर माल दिया होता हैं। उनकी बहुत-सी रकम दिये हुए माल की क्रेडीट में लगी हुई होती हैं । इसी कारण ऐसे होलसेलर्स उत्पादकों से माल की खरीद करते वक्त क्रेडीट माल माँगते हैं। उन्हें माल क्रेडीट देना ही पड़ता हैं।

 होलसेल व्यापारियों ने भी क्रेडीट पर माल दिया होता हैं। कारण बाजार में उनका मजबूत स्थान होता हैं। क्रेडीट यह उनके धंधे की रीत होती है। हम नवउद्योजक है, हमारा उत्पादन बाजार में नया है, बाजार के पुराने ब्रैन्ड के उत्पादनों से स्पर्धा करना हमें नहीं आयेगा यह निश्चित मालूम होता हैं।

 इसी कारण उन्हें क्रेडीट पर माल देने के लिए यदि हमने इन्कार किया तो व्यावसायिक स्पर्धा में वह हमारे उत्पादन को बाजार में सहजता से प्रवेश करने नहीं देते । ऐसे होलसेल व्यापारी बाजार में अपना नियंत्रण रखते हैं। ऐसे व्यापारियों की एक मजबूत संघटना होती हैं।

 ऐसे होलसेलर्स के पास जाने से पहले ही हम उन्हें क्रेडीट (माल) दे सकते हैं, क्या? उन्होने क्रेडीट माँगा तो अपनी आर्थिक क्षमता उन्हें क्रेडीट देनी इतनी हैं क्या इसकी जाँच करो। होलसेलर्स क्रेडीट माँगेगा ही यह मानकर ही उनके पास जाओ।

आपके पास से पंद्रह दिनों के क्रेडीट पर माल लेकर वही माल आगे रिटेलर को दस दिन के क्रेडीट पर देते हैं और बचे हुए पाँच दिन का जो गॅप है, उसमें उधरसे वसुली करके इधर की उधारी चुकती करना ऐसा टर्न ओव्हर करना यह उस धंधे की एकरीत हैं।

 आपकी आर्थिक क्षमता न हो तो होलसेलर्स के पास वितरण के लिए मत जाओ। आपके उत्पादन का आप डायरेक्ट मार्केटींग करें यह कभी भी अच्छा, आपका माल मार्केटींग टीमद्वारा डोअर मार्केटींग करना अथवा रिटेलर के काउंटर को माल बेचने का प्रयत्न करना यही मध्यममार्गी पर्याय (विकल्प) चुन लो । मार्केटींग करना आपको संभव ही न हो ओर उत्पादनं का प्रमाण अधिक हो तथा बिक्री उद्देश्य बड़ा हो तो होलसेलर्स के पास जाने के अलावा विकल्प नहीं हैं।

 आपके उत्पादन से जिस कंपनी की स्पर्धा होगी उस कंपनी की ओर से जितना मार्जिन होलसेलर्स को दिया जाता हैं, उससे अधिक मार्जीन हमें शुरु में होलसेल व्यापारी, स्टॉकिस्ट इन्हें देना पड़ेगा और साथ मे क्रेडीट भी देना पड़ेगा। होलसेलर्स के पास माल देने के बाद उस माल की बिक्री कुछ प्रमाण में ही क्यों न  हो होती ही हैं।

 इसका कारण रिटेलर को क्रेडीट दिया हुआ होने के कारण रिटेलर को वे ऐसा माल लेने के लिए ही कहते हैं । होलसेलर को आपके उत्पादन में अधिक मार्जिन मिलने के कारण, क्रेडीट मिलने के कारण समय पड़ने पर होलसेल व्यापारी बाजार में का रनिंग आयटम माल की कमी निर्माण करते हैं। ऐसी कमी निर्माण होने पर उनकी ओर से माल की क्रेडीट पर खरीद करनेवाले, रिटेलर को उस आयटम उत्पादन के पर्याय के रुप में आपका माल देने का प्रयत्न करते हैं।

 इस प्रकार जबरदस्ती से ही क्यों न हो परंतु आपके उत्पादन का बाजार में प्रवेश होता हैं और यदि आपके उत्पादन का स्टॅण्डर्ड स्पर्धक ब्रेन्डड उत्पादनों के मुंहतोड़ हों तो उसका बाजार में स्थान पक्का होता हैं और उसके बाद आपके भी ब्रैन्ड की माँग बढ़ती हैं। होलसेलर्स, रिटेलर्स इन्हें आप अधिक दे सकनेवाला मार्जीन बाद में धीरे- धीरे कम करो और स्पर्धक उत्पादकों के मार्जीन इतना समान मार्जीन दो ।

 मार्केटींग यह बिक्री का एक तंत्र हैं और यह तंत्र सबको ही आत्मसात होगा ऐसा नही इसी कारण आप आपके उत्पादन का प्रमाण, कार्यक्षेत्र, उसकी व्याप्ती, बिक्री उद्देश्य इनका प्रमाण देखकर उत्पादन होलसेलर्स को देना हैं या नहीं यह निश्चित करें । उत्पादनं का प्रमाण कम हो और शुरु में उत्पादित हुआ माल सभी क्रेडीट पर दिया तो आपका टर्न ओव्हर बिघड जायेगा। बाजार से माल की बिक्री होकर पैसा वापस आने तक उत्पादन रुकेगा।

 इसके लिए नवउद्योजक के रुप में खुद मार्केटींग करना, डोअर मार्केटींग पद्धति का अवलंब करना, रिटेल काउंटर्स को माल की सीधी आपूर्ति करना होलसेल व्यापारी पद्धती का अंदाज लेकर उनकी और से बिक्री करना ऐसे बहुविकल्प आपकी ओर से अमल में आने चाहिए।

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