व्यवसाय पूर्व नियोजन (Pre-Business Planning)

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व्यवसाय का चयन पक्का होने पर कौन-सा व्यवसाय शुरु करने वाले हो इसका निर्णय होने पर सबसे पहले व्यवसाय के लिए समय का नियोजन करना चाहिए। व्यवसाय की शुरुवात होकर उत्पाद शुरु होकर, उसका मार्केटींग शुरु होकर उत्पादन खर्चा और फायदा इनका सामंजस्य (मेल) होने तक संभवतः अधिक से अधिक समय आपको व्यवसाय का नियोजन करने के लिए ही देना पड़ेगा ।

 व्यवसाय में पूर्णतः ‘सेटल’ होने तक अपने पास का सारा समय व्यवसाय पर लगाना चाहिए। आपके पास एक निश्चित लक्ष्य, निश्चित उद्दिष्ट सामने हो तो आपका पूरा समय उस उद्दिष्ट को पूरा करने के लिए करने पड़ रहे प्रयत्नों को देना होगा ।

 हम अब कहाँ है और हमें कहाँ जाना हैं इसका उद्दिष्ट निश्चित होने पर उसके लिए करने पड़े नियोजनों की कार्यवाही करो। किसी पर निर्भर मत रहो । निर्णय हमने खुद लिया हुआ होने के कारण उद्देश (लक्ष्य) प्राप्त करते वक्त होनेवाली गलतियाँ अथवा नुकसान के बारे में अन्यों को दोष न देते हुए हरबार पिछली गलती सुधारकर आगे बढ़ो।

 वही गलती बार-बार होने से नुकसान अधिक होता है। परिणामत: मानसिक और व्यावहारिक समतोल बिघड जाता हैं। आपका निश्चित ‘व्हिजन’ (लक्ष्य) सामने रखकर उसके लिए करने पड़ रहे सभी व्यावहारिक प्रयत्नखुद ही करें। निश्चित लक्ष्य सामने रखे, काम और समय का नियोजन तथा उसका बंटवारा करें।

 दिन के चौबीस घंटों मे व्यवसाय का नियोजन और उसके लिए प्रत्यक्ष कृति के लिए कुछ समय दो। पहला क्रम दो आर्थिक नियोजन को, क्योंकि आपका आर्थिक नियोजन अव्यवस्थित अथवा अनिश्चित स्वरुप का हो तो और अचानक उत्पादन शुरु करने तक आपके प्रोजक्ट का खर्चा नियोजन से भी ज्यादा बढ़ गया, तो आपका प्रत्यक्ष उत्पादन शुरु होने से पहले ही आपके पास का पैसा खत्म हुआ होगा।

 पुरा प्लॅन, प्रोजेक्ट तैयार हो और उत्पादन शुरे न हो तो व्यवसाय के लिए लगाये गए पैसे का सूद बढ़ जायेगा और उत्पादन शुरु होने से पहले ही नुकसान का बोझ उठाना पड़ेगा। इसलिए आपका उत्पादन शुरु होकर व्यवसाय शुरु होने तक आपको आनेवाला जो  खर्चा है उसके कम-से-कम बीस से पच्चीस प्रतिशत ज्यादा आर्थिक नियोजन आपका होना चाहिए।

महंगाई के जमाने में कल की चिजें, मशीनरी, सामानों की कीमत, वैसीही रहेंगी ऐसा नहीं। भागदौड़ भरे इस जमाने में चिरंतन ऐसा कुछ भी न होने से व्यवसाय के संभवतः धोखे, और स्पर्धा इसका होनेवाला विपरीत असर समझकर परिस्थिती पर  हावी होने की कला, आत्मसात करो।

पूर्व नियोजन करते वक्त खर्चा कम करो।

आधुनिकीकरण का युग होने से व्यवसाय में हर रोज नई-नई संकल्पनाएँ और तंत्रज्ञान का प्रवेश होने के कारण नये तंत्रज्ञान की भी रुचि रखो और उसको स्विकार भी करो। उत्पादन पूर्व नियोजन करते वक्त खर्चाकम करो। कौन-सा खर्चा और किसलिए कर रहे हो इसका निरीक्षण करके संभवतः कम खर्च करो।

जहाँ संभव है वहाँ खुद का बल इस्तेमाल करो, खुद काम करो। खर्च कम करो। जिस काम के लिए जो समय हमने नियोजित किया है उस समय वही काम करो। आज का काम आज ही करों। काम के महत्त्व के साथ उस कामों का बँटवारा करो। जिस काम के संबंध में हमारे पास निश्चित ज्ञान नहीं वह ज्ञान जानकारी, तंत्रज्ञान प्राप्त करो।

 कोई भी ज्ञान सीखने के लिए समय का और उम्र का कोई बंधन नहीं होता। इसी कारण जो ज्ञान हमारे पास नहीं हैं उसे इकट्ठा करो। जानकारी इकट्ठा करो। हमें व्यावसायिक सफलता के लिए उपयोगी पडनेवाली जानकारी और तंत्रज्ञान को इकट्ठा करके उसका उपयोग सफलता पाने के लिए करो।

 सर्वज्ञ ऐसा संसार में कोई न होने से, जो संभव है वह सीखते जाओ। क्योंकि ज्ञान और बुद्धि के बलपर ही सत्ता और धन प्राप्त कर सकते हैं। अज्ञानी मनुष्य ना सत्ता पा सकते है ना संपत्ति पा सकते हैं। नये व्यवसाय की शुरुवात करते वक्त जिनमें धोखा अधिक हैं या कम है इन दो मार्गों की अपेक्षा मध्यममार्गी विकल्प नवउद्योजकों को चुनना चाहिए।

 जिस व्यवसाय का चयन किया है उस व्यवसाय से समानता होनेवाले, स्पर्धक व्यवसाय, स्पर्धक उद्योजक इनका नजदीकी से अध्ययन करो। संभव हो तो स्पर्धक व्यावसायिकों से दोस्ती करें । व्यावसायिक मित्रता यह नवउद्योजकों के लिए व्यवसाय की शुरुवात करने से लेकर व्यवसाय में प्रगति करने तक अत्यंत लाभदायी होती है।

व्यवसाय में शून्य से विश्व निर्माण किए व्यक्तियों के अनुभव, सलाह, मार्गदर्शन लो। जिन बातों का आपको ज्ञान, समझ नहीं वह बातें, वह ज्ञान अन्यों से सीखते वक्त उसमें छोटापन मत मानो। व्यावसायिक व्यक्तियों के चरित्र, साहित्य, संदर्भ ग्रंथ, शोध निबंध इनका अध्ययन करो। गलती नहीं करता ऐसा मनुष्य संसार में नही हैं। लेकिन गलतियों की पुनरावृत्ती टालो। गलती समझकर भी उसकी पुनरावृत्ती करनेवाले लोग खुद को समझदार समझते हैं। लेकिन बाहर के विश्व में इनकी गिनती मुर्खो में (बेवकूफों में) होती है।

 व्यवसाय के ज्ञानी लोगों से सुसंवाद करो, उनसे बातचीत करो, विनम्रता से आपको जो चाहिए वह जानकारी, मार्गदर्शन, सहायता उनसे माँगो । निश्चित ही आपको सहाय्यता मिलेगी। व्यावसायिक सफलता प्राप्त करने का ध्येय और वह भी अत्यंत ऊँचा ध्येय आपने रखा हों तो विनम्रता का गुण भी आपके पास हो।

 आत्मकेंद्रीत, घमंडी, अधिक समझदार, खुद को सर्वगुणसंपन्न-समझनेवाले लोग कुछ समय तक व्यवसाय में सफलता पायेंगे ही लेकीन उनकी सफलता एक मर्यादा तक सीमित होती हैं । सफलता की शिखरें वह भी नजर के, कल्पना के परे प्राप्त करनी हों तो विनम्रता का गुण होना ही चाहिए।

 रतनटाटा जैसे उद्योजकों के उदाहरण इस बारे में दे सकते है। संसार के अस्सी देशों में जिनकी सौं कंपनियो का विस्तार पहुँचा है वह व्यक्ति भी एक आदर्श, नम्र उद्योजक के रुप जगप्रसिध्द है। व्यवसाय शुरु करते वक्त व्यवसाय से संबंध रखनेवाले, व्यावसायिक प्रगती को सहायता कर सकनेवाले व्यक्तियों के संपर्क में रहो। उन्हें समय दो । उनसे मित्रता बढ़ाओ।

 आर्थिक व्यवहार में जिनका मन स्थीर नही हैं ऐसे व्यक्तियों से सावधान रहो। नकारात्मक मनोवृत्ति वाले, लक्ष्य न रखनेवाले, बड़े सपने न होनेवाले, अज्ञानी लोगों से थोड़ा दूर ही रहो। व्यसनी, आलसी, चरित्रहीन मित्रों से खुद को थोडा दूर ही रखो। हम चून रहे उद्योग-व्यवसाय से समाज को, देश को फायदा हो ऐसा भी एक संकल्प रखो।

 सामाजिक नितिमूल्यों का पालन करो। समाज के सामने, देश के युवा बेरोजगार पीढ़ी के सामने एक आदर्श निर्माण हो। ऐसा उद्योग-व्यवसाय निर्माण हो । ऐसा व्यवसाय, उद्योग और खुद का चरित्र निर्माण करो। हमने नियोजन किया हुआ उद्योग-व्यापार अपने खुद के लिए और परिवार के लिए आर्थिक आधार देने के उद्देश्य से शुरु करते हैं।

 हमारा व्यवसाय हमारी आज की और कल की पीढ़ी का आर्थिक-नियोजन करनेवाला होता है, आपका करिअर, भविष्य बनानेवाला होता है। इसी कारण उसके लिए करने पड़ रहे सभी तरह की शारिरीक, मानसिक और बौद्धिक मेहनत की तैयारी रखो।

प्राकृतिक संपत्ति का उपयोग करके हम कोई उत्पादन शुरु करनेवाले होते हैं तब उस संपत्ति का नाश होने के कारण हम अप्रत्यक्षरुप से नई संपत्ति का निर्माण करें। आधुनिक विश्व में व्यवसाय शुरु करते वक्त बहुत बार पारंपारिक विचार और जानकारी अनउपयुक्त साबित होती हैं।

 तभी कालानुरुप ज्ञान का उपयोग करके व्यावहारिक दृष्टीकोन आँखो के सामने रख के उद्योग-व्यापार में आनेवाले उतार- चढाव, फायदे-नूकसान का स्वीकार करना सीखना चाहिए। उद्योग-व्यवसाय होने दे अथवा जग का कोई सा भी क्षेत्र हो, सच्ची जानकारी, सत्यता, व्यावहारिक पारदर्शिकता इसके बलपर सफलता प्राप्त कर सकने के कारण चापलुसी करके असत्य जानकारी सत्य महसूस करनेवाले अविश्वासू लोगों से दूर रहो।

व्यावसायिक अवसरों के खोज में रहो।

‘ढूंढ़ने से खुदा भी मिलता है’ ऐसी एक कहावत है। इसलिए हमेशा मौके के खोज में रहो। हम कर रहे व्यवसाय की शुरुवात करनेवाले स्थान के नजदीक प्राकृतिक, सामाजिक, राजकीय, शैक्षणिक, बाजार में मिलनेवाला अवसर, स्पर्धा ऐसे सभी क्षेत्रों के मौकों को खोजकर अपने उद्योग के लिए फायदेमंद हर मौके का सदूपयोग करना सीखो।

 हमें जो मौका चाहिए वह नहीं मिल रहा हो तो अपने ज्ञान और बुद्धि कौशल के बलपर मौके का निर्माण करो। जो व्यवसाय, उद्योग नियोजित होगा उसकी सिर्फ प्राथमिक जानकारी आपको हो तो उतनी अधुरी जानकारी के आधार पर तुरंत ही व्यवसाय की शुरुवात ना करते हुए व्यवसाय का व्यवस्थित तकनीकी प्रशिक्षण लेना।

 आप खुद ही आपके व्यवसाय की तकनीकी बातों से अनजान रहेंगे तो आपको प्रशिक्षित मनुष्यबल पर अवलंबित रहना पड़ेगा और उनकी सलाह से ही व्यावसायिक निर्णय लेने पडेंगे। वैसे  व्यावहारिक दृष्टी से देखा जाये तो जिन उद्योजकों के पास कुशल और प्रशिक्षित मनुष्यबल होता है उन्हें सफलता पाने के मौके अधिक होते हैं।

 कुशल और गुणात्मकता से परिपूर्ण मनुष्यबल होना यह किसी भी कंपनी की महत्वपूर्ण बात होती हैं। कर्तव्यदक्ष, कार्यतत्पर, मेहनत की तैयारी होनेवाले मनुष्यबल का चयन नवउद्योजकों को करना जरुरी होने से व्यवसायका चयन होने पर व्यवसायों के लिए लगनेवाला मनुष्यबल चुनते समय कुशल और उस क्षेत्र की तकनीकी तथा व्यावहारीक जानकारी के साथ ही भरोसेमंद मजदूर चुनलो।

 हमारे देश में आज कुशल मजदूरों की कमी नही है। एक सौ पच्चीस करोड का हमारा देश तंत्रज्ञान जानकारी से लेकर सभी क्षेत्रों के कुशल-अकुशल मनूष्यबल विश्व के बहुत से देशों को देने में सबसे आगे हैं। अपेक्षित वेतन और उनकी मुलभूत जरूरतें पूरी हो सके ऐसी सुविधाएं उपलब्ध करके देने पर ऐसे मनुष्यबल की कमी हमारे देश में तो आज महसूस नहीं होती।

 हर व्यावसायिक और उद्योजक को व्यवसाय में सफलता पाने के लिए व्यावसायिक समझौते करने ही पड़ते हैं, व्यावहारिक समझोते करने में निपुण लोग ही व्यवसाय में सफलता पा सकते हैं। उद्योग-व्यवसाय में सभी प्रकार के लोग हमारे सामने आते हैं। संसार के हर मुनष्य का स्वभाव अलग होने से हमारे सामने आनेवाले हर  मनुष्य के स्वभाव से हमें समझौता कर लेना चाहिए। सामनेवाले व्यक्ति का स्वभाव पटता नहीं, अच्छा नहीं लगता, उस वक्त व्यावसायिक फायदा ध्यान में लेना ।

सामनेवाले व्यक्ति के स्वभाव से हमारा स्वभाव मिलता-जुलता न हो, लेकिन उसके कारण हमें व्यावसायिक नफा मिलनेवाला हो तो, हमें उससे समझोता करके उसके स्वभाव से मिलता-जुलता अपना स्वभाव, व्यवहार और सुसंवाद रखना चाहिए। यह हमारे स्वभाव और आदतों से मिलता-जुलता लें, ऐसा हठवादी स्वभाव न रखें।

 सामने कोई भी व्यक्ति होने दें, व्यवहार करते समय आपकी कल्पना और वास्तव  परिस्थिती देखकर ही व्यवहार करना चाहिए । सिर्फ कल्पना के आधार पर आर्थिक और व्यावसायिक व्यवहार न करें। हम कल्पना में बहुत बार अपने सपनों की बातें लाते है। लेकिन सिर्फ हमने की हुई कल्पना अथवा सिर्फ सपना देखकर व्यावसायिक सफलता नहीं मिलती। तो आजकी परिस्थिती का गहरा अध्ययन करके वास्तविकता का एहसास रखके, काल के अनुरुप व्यवहार करने पड़ते हैं।

 असमंजस में डालनेवाले (कठिन) व्यवहार संभवतः टालो। अत्यंत कठिन, अव्यवहारी, नूकसान की ज्यादा संभावना होनेवाले निर्णय मत लो।सलाह-मार्गदर्शन लेते वक्त अन्यों के अनुभव सुनने की, उनका ज्ञान समझ लेने की मानसिक तैयारी रखो।इसके साथ ही अव्यवहार्य, अनैतिक लगनेवाले निर्णय मिलकर लेते वक्त उन निर्णयों का विरोध करने का, वहनिर्णय गलत है यह बताने का साहस भी रखो।

 संघर्ष यह हर सफल मनुष्य की सफलता की कहानी होती है। संघर्ष के बिना इस संसार में कुछ भी नहीं मिलता। संघर्ष न करते हुए यदि हर किसी को सफलता मिलती तो संसार में काई भी असफल न रहता। संघर्ष करने की तैयारी नवउद्योजकों को रखनी पड़ती हैं।

शॉर्टकट व्यवसाय करने से कभी सफलता प्राप्त नही होती

 व्यवसाय शुरु करने के पीछे हमारा एक ही लक्ष्य होता है, वह लक्ष्य मतलब फायदा प्राप्त करना। फायदा प्राप्त करने के दो मार्ग होते हैं-एक सीधे मार्ग से, कष्ट- मेहनत से, संघर्ष से, नैतिकता से व्यवसाय में सफलता पाने का मार्ग तो दुसरा अनैतिक मार्ग, बिना संघर्ष के पैसे पाने का शॉर्टकट होता हैं।

 शॉर्टकट से प्राप्त किए हुए धन से न सुख मिलता है, न समाधान, न हम अपनी अगली पीढ़ी को संस्कार दे पाते हैं। गलत मार्ग से प्राप्त की हुई सफलता भी शॉर्ट ही होती हैं। चिरंतन सफलता के लिए नैतिक मार्ग का अवलंब करना पड़ता है ।

जो सफलता हमें व्यवसाय में मिलें ऐसी हमारी कामना है वह सफलता पाने के लिए सभ्य, सदाचारी, कष्टदायी, संस्कारी और नैतिक मार्ग का चयन करना पड़ता है व्यवसाय प्रत्यक्ष शुरु करने से पहले आर्थिक नियोजन, व्यवसाय के लिए जरुरी तांत्रिक प्रशिक्षण, बाजार का अध्ययन, बाजार में आपने उत्पादन के लिए स्थान निर्माण करना, कारागीर तथा अन्य मनुष्यबल की व्यवस्था करना, कच्ची सामग्री, अन्य साधन, मशिनरी, कानूनी इजाजतें, बिजली, पानी, जगह, वितरण, यातायात, मार्केटिंग, उत्पादन की प्रसिद्धी, विज्ञापन ऐसा सभी प्रकार का नियोजन, सभी नियोजनों में सुसंगत सामंजस्य निर्माण करना चाहिए।

 स्पर्धा नहीं ऐसा विश्व में व्यवसाय न होने से स्पर्धा की तैयारी करके ही उद्योग-व्यवसाय में प्रवेश करना चाहिए। जो व्यवसाय चुना है. उसका पूर्णतः अध्ययन करके, सभी प्रकार का नियोजन करके व्यवसायों की शुरुवात करनी चाहिए।

 पैसा, आदरसन्मान, प्रतिष्ठा यह सब मिलें ऐसा उद्देश्य आँखो के सामने रखके ही व्यवसाय की शुरुवात करों। बडे सपने, बडा लक्ष्य लेकर हम भविष्य की शुरुवात करनेवाले होते हैं। इसमें सफलता पाने के लिए आवश्यक सभी प्रकार के कष्टों की तैयारी रखो क्योंकी “मेहनत” ही सफलता पाने का मूल राज हैं।

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