प्लास्टिक उद्योग ( How to start plastic business )

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धातु के खोज के बाद मनुष्य के जीवन की महत्त्वपूर्ण खोज – मतलब प्लास्टिक की खोज हैं। मनुष्य के दैनिक जीवन में हर स्थान पर हर क्षेत्र में आज प्लास्टिक का बहुत उपयोग हो रहा हैं । मनुष्य नींद से उठते ही सुबह दाँत साफ करते वक्त प्लास्टिक का ब्रश लेता हैं । दैनिक जीवन के सुबह की शुरुवात प्लास्टिक के उपयोग से होती हैं ।

भारत में साल में बीस लाख टन प्लास्टिक की निर्मिती होती हैं। रसोई में उपयोग में आनेवाली खाने की बर्तनें, प्लेटस, गिलास आदि प्लास्टिक से बनाई जाती हैं। इसके साथ कंघियाँ, बाल्टीयाँ, नल, चप्पलें (जूतें), टी-पॉय, टेबलस्, कुर्सियाँ, लाईट (बिजली) फिटींग का साहित्य, वाहनों के कुछ भाग, शालेय वस्तुएँ, खिलौनें, पानी की आपूर्ति करनेवाली पाईपलाईन्स, फाइल्स, डायरियों के कव्हर्स, रेनकोट, कैरीबैग, धागे आदि चीजें प्लास्टीक से बनाई जाती है और उन्हें माँग भी बड़े प्रमाण में हैं।

प्लास्टिक उद्योगों में सैकडों चीजें उत्पादित करने जैसी होने से आप आपके भांडवल (पैसे) के नियोजन के अनुसार आप जो चाहिए उन चीजों का उत्पादन करके बेच सकते हैं। प्लास्टिक उद्योग यह एक रासायनिक प्रक्रिया उद्योग होने से उसका शास्त्रशुद्ध प्रशिक्षण लेकर ही उद्योग शुरू करना पड़ता है। प्लास्टिक उद्योगों के लिए औद्योगिक इजाजतों के साथ ही प्रदूषण नियंत्रण महामंडलों की भी इजाजत लेनी पडेगी।

प्लास्टिक उद्योग की जानकारी के लिए आप लेखक सुबोध जावडेकर इनकी ‘प्लास्टिक की मेजवानी’ यह महाराष्ट्र राज्य साहित्य और संस्कृति मंडल इन्होंने प्रकाशित किए हुए पुस्तक का जरूर अध्ययन कीजिए। प्लास्टिक कैसे तैयार करते हैं इनकी कृतिसह प्लास्टिक को खोज से आज की जरूरत यहाँ तक की सभी जानकारी आपको इस पुस्तक में मिलगी। प्लास्टिक यह प्राकृतिक दृष्टि से विघटीत न होने के कारण एक बार उपयोग में लाकर खराब हुआ, टूटा-फूटा प्लास्टीक फिर से पिघलाकर उसपर प्रक्रिया करके नए प्लास्टिक में उसका मिश्रण करके फिर से उपयोग कर सकते हैं।

घरेलु उपयोग की अनेक चीजें आज प्लास्टिक से बनाई जाती हैं। डायनिंग टेबल पर के बर्तन, प्लेटस्, कंघियाँ, ब्रश, चूडियाँ (कंगनें), छाते के दांडे, फर्निचर इनमें से एक अथवा कुछ चिजें आप उत्पादित करके बाजार में ला सकते हैं। ‘समृद्धि प्लास्टिक’ जैसी कंपनियों की अनेक उत्पादनें आज बाजार में लोकप्रिय हैं। ऐसी उत्पादनें उच्च गुणात्मकता की (दर्जे की) हैं और टिकनेवाले उत्पादनों से बनाई जाती हैं ।

उच्च क्षमता की उष्मा और आर्द्रता (ठंडापन) सहन करनेवाली चीजें कुछ विशिष्ट प्लास्टिक से बनाई जाती हैं। प्लास्टिक का उपयोग और उत्पादन करते वक्त उचित खबरदारी लेनी ही पड़ती हैं। प्लास्टिक के अत्यंत उपयोग के कारण पाश्चात्य देशों में जैसी प्लास्टिक के कचरे की समस्या निर्माण हुई हैं वैसे ही भारत में भी प्लॉस्टीक के कचरे की समस्या निर्माण हो रही हैं। प्लास्टिक का कचरा प्राकृतिक प्रक्रिया में विघटीत न होने से मानव- समाज के सामने भी यह एक समस्या हैं।’

मार्केट :

झोंपडी से लेकर उच्च-वर्गीय बस्ती तक हर घर की व्यक्ति हमारा ग्राहक हैं। ग्रामीण भाग से (देहात से) लेकर शहरी भाग तक हर घर में, दूकान में, ऑफिस में, कारखाने में, बाजार में अलग-अलग प्लास्टिक की चीजों की माँग होती हैं। नया उद्योग शुरू करते वक्त संभवत: स्थानिक के बाजार में माँग होनेवाली चीजें उत्पादित कीजिए, प्लास्टिक के बड़े होलसेल व्यापारी और वितरक हर बाजार में होते हैं। प्लास्टिक के चीजों का उत्पादन करके उसे डोअर टू डोअर घूमकर बेच सकते हैं। आप कौन-सी चीजों का उत्पादन करेंगे उसके आधार पर आपकी मार्केट तय होगी।

रॉ मटेरियल :

कच्चा प्लास्टिक, पॉलिमर्स, रबर, ब्युटाडाईन और निओप्रीन यह प्राकृतिक रबर, नॅफथा, फिनाल और फॉर्मअल्डीहाईड, पी.व्ही.सी. रेजिन आदि कच्चा माल लगेगा।

मशिनरी :

इंजेक्शन मोल्डींग मशिन, एअर कॉम्प्रेसर, मोल्डींग लिफ्टींग मशिन, स्क्रॅप कटर, औजारें और अन्य मामूली छुट्टे भाग आदि मशिनरी लगेगी।

1 thought on “प्लास्टिक उद्योग ( How to start plastic business )”

  1. sir me plastic manufacturing bussines suru krna chahta hu iske liye kya koi course hota hai yadi hai to please mujhe vaha ka address send krna

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