हमारा भारत देश वैसे कृषिप्रधान देश हैं। देश की अधिकतर जनसंख्या आज भी गाँवों में ही रहती हैं। भारत की अर्थव्यवस्था खेती और खेतीपूरक व्यवसाय पर हीनिर्भर हैं।
खेती यह प्रमुख व्यवसाय होने से खेती के साथ ही खेती और खेतीपूरकं होनेवाले जोडधंदे भी किसान अर्थार्जन के लिए करते हैं। पशुपालन, कुक्कुटपालन, भेड-बकरी पालन, खेतीमाल प्रक्रिया उद्योग यह किसानों के सहव्यवसाय होते हैं।
ऑस्ट्रेलिया और न्यूझीलंड के बाद दूध का उत्पादन करनेवाला भारत यह बहुत बडा देश हैं। दूध और दूध से बनाई हुई प्रक्रिया की हुई लस्सी, श्रीखंड, घी, मस्का, पाश्चराईज्ड मिल्क आदि उत्पादनों को बाजार में बहुत बडी माँग हैं।
भारत के बहुत-से लोग शाकाहारी हैं, शाकाहार में दूध का एक मुख्य अन्न के रूप में सेवन किया जाता हैं। एक सौ पच्चिस करोड़ जनसंख्या को पर्याप्त इतने दूध का उत्पादन हमारे देश में होताहैं।
दूध का अधिक से अधिक उत्पादन होने के लिए गाय, भैंस, भेड, बकरियों का पालन किया जाता हैं। दूध का उत्पादन बढे इसलिए उन्हें सकस समतोल आहार दिया जाता हैं ।
आधुनिकीकरण के इस युग में अच्छे जाति के और अधिक दूध देनेवाले गाय- भैंसों का तबेला पद्धति से पालन किया जाता हैं। उनकी घास की जरूरत पूरी करने के लिए उन्हें पशुखाद्य दिया जाता हैं। पशुखाद्य का व्यवसाय आज बहुत प्रगतिपथ पर हैं।
जानवरों के खाद्य के साथ ही मुर्गी खाद्य तैयार करके बेचना यह भी एक जोडधंदा किया जाता हैं। ग्रामीण भाग में बडे प्रमाण में पोल्ट्री-व्यवसाय है। अंडे देनेवाल सुधारित मुर्गीयों की पोल्ट्रीशेडस के साथ ही ब्रॉयलर मुर्गीयों के भी बहुत से शेडस् गाँवों में हैं।
उन्हें लगनेवाले मुर्गी खाद्य भी इसी प्रकल्प में तैयार कर सकेंगे । बेरोजगारी पर मात करने के लिए गाँवों के अनेक युवकों ने गाय-भैंसों के तबेले, भेड-बकरियों के फार्मस, पोल्ट्री और ब्रॉयलर फार्म शुरू किए हैं। उन्हें पशु और पक्षी खाद्य की नियमित जरूरत होती हैं।
भारत का बहुत-सा वर्ग भी आज मांसाहार करता हैं । शाकाहारी लोग भी अंडे खाते हुए दिखाई देते हैं। अंडे और अंडों से बनाये हुए केक जैसे बेकरी पदार्थों को बाजार में बहुत-सी माँग हैं। होटल, ढाबा, भोजनालय इन्हें लगनेवाले चिकन की आपूर्ति ब्रॉयलर उत्पादन करनेवाले-उत्पादक करते हैं।
पोल्ट्रीयों के मुर्गियों के साथ ही ब्रॉयलर के बड़े-बड़े फार्मस् गाँवों में हैं। मुंबई जैसे महानगर को लगनेवाला बडे प्रमाण का दूध, मांस और अंडे इनकी आपूर्ति, ग्रामीण भाग की डेअरियाँ और फार्मस् करती हैं।
इन पशु-पक्षियों को अन्न की जो जरूरत लगती हैं; वह पूरी करने के लिए और उनकी ओर से अच्छे प्रकार का दूध, अंडे और मांस का उत्पादन मिलें इसके लिए उन्हें सकस और समतोल शास्त्रशुद्ध फॉर्मुलें के अनुसार तैयार किया हुआ अन्न मतलब पशुखाद्य देना पड़ता हैं। नवउद्योजक बेरोजगार लोगों को बाजार की माँग का अध्ययन करके मध्यम स्वरूप का पशुखाद्य निर्मिती प्रकल्प शुरू किया तो निश्चित ही अच्छा नफा होगा इसमें शक नहीं हैं।
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मार्केट :
पशुखाद्य बिक्री के लिए ग्रामीण और शहरी भाग में वैसे खास पशुखाद्य के होलसेल डिलर्स हैं। उन्हें आपूर्ति कर सकते हैं। दूध-संघ, दूध डेअरियाँ, पोल्ट्री फार्मस धारक, किसान, गाय-भैंसों के तबेला मालिक इन्हें पशुखाद्य तैयार करके बेच सकते हैं। अच्छे प्रकार की माँग होनेवाला खाद्य तैयार करने के पूर्व उनका फॉर्मुला उस क्षेत्र के तज्ञ व्यक्तियों से तैयार करके लिजिए। कारण खाद्य का सेवन करने के बाद एक से दो दिनों में उसका रिझल्ट मिलता हैं। यदि आपका फॉर्मुला अच्छा बना हुआ हो तो ही उत्पादन अच्छा मिलेगा और माँग भी बढेगी।
रॉ मटेरियल :
मकई, चावल, गेहूँ, ज्वार, भात का भुसा, व्हेटर्नरा सप्लीमेंटस, मछली-सुकट, कडबा कुट्टी, भुस्सा आदि कच्चा माल लगेगा।
मशिनरी:
हेमंर मील, ३ हॉर्सपॉवर मोटर, ग्राईंडर, बडा मिक्सर, आदि मशिनरी लगेगी।