खेती से संबंधित होनेवाले ग्रामीण भाग के युवा बेरोजगारों को राईस मिल उद्योग सहज करना आता हैं। ग्रामीण भाग के उद्योजकों के साथ शहरी भाग के नवउद्योजकों को भी ग्रामीण भाग के किसानों से कच्चा माल खरीद लेकर उसपर प्रक्रिया करके वह माल शहर के ठोक-व्यापारियों को बेच सकते हैं।
भारत की जनसंख्या प्रचंड गति से बढ़ने के कारण इस भयावह जनसंख्या को उस प्रमाण में अनाज-धानों की जरूरत होती हैं। भारत की जनसंख्या यदि अब्ज के आगे हुई हो तो भी भारत इतनी बडी जनसंख्या को अन्नधान्य देनेवाला सक्षम और स्वयंपूर्ण देश हैं। देश की जनसंख्या को लगनेवाला अन्नधान्य गेहूँ, मकई, राईस (चावल), ज्वार भारत निर्यात भी करता हैं।
शक्कर की निर्यात करनेवाला भारत यह शक्कर निर्यात का एक बडा आपूर्ति करनेवाला देश हैं। भारत में गेहूँ, चावल (राईस), और ज्वार यह फसलें प्रमुखत: ली जाती हैं।
महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, केरळ, कर्नाटक, तामिळनाडू, बंगाल इन राज्यों में चावल बडें प्रमाण में पैदा किया जाता हैं। चावल खेती से जो फसल निकलती हैं; उसे ही अपने यहाँ ‘धान’ (चावल) ऐसे कहते हैं। भात का सीधा सेवन न करके उसपर होनेवाला छिलके का भाग निकालकर अंदर का भाग चावल के रूप में खाने के लिए उपयोग में लाते हैं।
पारंपरिक पद्धति से किसान चावल को अच्छी तरह से छपटाकर, गर्म होने के लिए रखके धान से चावल अलग करते। उसके बाद भात की चक्कीयाँ आईं। धानकांडप यंत्रों में धान डालकर उनमें से चावल अलग किया जाता। ग्रामीण भाग के उत्पादक किसान उसकी जरूरत के अनुसार धान का कांडप करके चावल का उपयोग करता था।
परंतु आज आधुनिकीकरण के जमाने में सभी नौकरी के पीछे लगे हुए दिखाई देते हैं। खेती करनेवाले को प्रतिष्ठा नहीं मिलती। नवयुवतियों का विवाह तय करते वक्त खेती करनेवालोंको नकारा जाने लगा और नौकरी करनेवाले को प्राधान्य दिया जाने लगा। इसी कारण थोडी-सी शिक्षा लेने के बाद अथवा शिक्षा पूरी करने के बाद युवक शहर में आने लगा। नौकरी कामधंदा मिलने के बाद युवक शहर में ही रहने लगा।
इसी कारण शहरी और निमशहरी भागों में बड़े महानगरों में प्रमुख अन्न होनेवाले चावल जैसे अन्नधान्य को प्रचंड माँग आने लगी। छोटी धानचक्कियों मे धान कांडप करके देना असंभव होने से भातचक्कीयाँ मतलब राईस मिल की निर्मिती हुई। राईस मिल में रोज हजारों टन धान का कांडप, प्रक्रिया होकर वह धान उसके प्रतवारी के अनुसार अलग करके, स्वच्छ करके, ग्राहकों की माँग के अनुसार पाँच किलो से लेकर पचास किलो तक बैगों में भरा जाता हैं।
बासमती, जिरगा, इंद्रायणी, आंबेमोहर, जया, रत्नागिरी, कोलम, घनसाल ऐसे चावलों की प्रमुख और माँग होनेवाली जातियाँ हैं किसानों से बाजारभाव के अनुसार चावल (भात) खरीद करने का और वह भात (चावल) राईस मिल में लाकर प्रक्रिया करके माँग के अनुसार पैकिंग करके व्यापारियों को बेचना ऐसा यह व्यवसाय हैं। बहुत-से राईस मिल उत्पादक व्यापारी निश्चित- जाति के (प्रकार के) भात की खरेदी करके उसपर प्रक्रिया करके अपने एक विशिष्ट नाम से ब्रँड बनवाकर बाजार में जाते हैं।
इस पद्धति में अधिक नफा मिलता हैं। कम कीमत से भात-खरीद लेने का और सभी प्रक्रिया पूरी करके अपने नाम के ब्रँड से वह मार्केट में लाने का; ऐसी ही पद्धति अधिक से अधिक राईस मिल व्यापारी उपयोग में लाते हैं। बारहों महिने माँग होनेवाला, सदैव माँग होनेवाला ऐसा यह व्यवसाय नवउद्योजकों ने भांडवल की, (धन की) पैसे लगाने की क्षमता हो तो अवश्य चुनिए ।
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मार्केट :
ग्रामीण और शहरी भाग के सभी किराना माल दूकानों में चावल बेचा जाता हैं। उसके साथ ही बडे मॉल्स, सुपर मार्केट, अनाज के रिटेल और होलसेल व्यापारी इन्हें उनकी माँग के अनुसार माल दे सकते हैं। सप्ताह का बाजार और चावल प्रदर्शनें यहाँ भी माल बेच सकते हैं। होटल, धाबा, भोजनालयें, मंगल कार्यालयें इन स्थानों पर भी माँग के अनुसार माल बेच सकते हैं। चावल बेचने के लिए संभवतः ग्राहकों को ढूँढना नहीं पड़ता।
रॉ मटेरियल:
बासमती, इंद्रायणी, कोलम, रत्नागिरी-२४, आंबेमोहर, जया, जिरगा, घनसाळ ऐसे विविध प्रकार के बाजार में माँग होनेवाले चावलों के जाति के प्रकार यह कच्चा पाल लगेगा।
मशिनरी :
कच्चे भात से चावल अलग करने का बडा भात कांडप यंत्र इसे ही राईस मिल मशीन अथवा राई मिल प्रोजेक्टर भी कहते हैं। यह मशिनरी आवश्यक है।