घर छोटा होने दे अथवा बडा होने दे, सभी घरों में छोडे-बडे फर्निचर की आवश्यकता होती हैं । घर से ही नहीं तो कंपनियाँ, कारखानें, ऑफिसेस, बैंकों ऐसे सभी स्थानों पर फर्निचर की जरूरत होती हैं। फर्निचर तैयार करने के लिए पहले सिर्फ लकड़ी के सामान का उपयोग किया जाता था।
उसके बाद लोहे की सामग्री से फर्निचर बनायें जाने लगे। अब तो प्लास्टीक और फायबर से भी फर्निचर बनाए जाने लगे। कितनी भी आधुनिकता आईं तो भी ‘पुराना ही सोना’ इस कहावत के अनुसार आज फिर लकड़ी के फर्निचर का जमाना आया ही हैं। लकड़ी के फर्निचर को बाजार में भरपूर माँग हैं।
लोहे के फर्निचर और लकड़ी के फर्निचर में लकडी का फर्निचर महँगा है। उस तुलना में लोहे और प्लॉस्टीक साम्रगी से बनाए हुए फर्निचर सस्ते हैं। फर्निचर उद्योग को आज अच्छे दिन आए हैं। व्यवसाय में संभवत: ऑर्डर के अनुसार फर्निचर तैयार करके दिए जाते हैं अथवा तैयार किए हुए फर्निचर निश्चित बेचें जाते हैं।
इसी कारण नुकसान होने की कहीं भी संभावना नहीं। कारीगर (मजदुरी का) व्यवसाय होने से रिटायर्डमेंट का प्रश्न ही नहीं होता। जब तक शारिरीक क्षमता है तब तक मनुष्य काम करके उत्पन्न प्राप्त कर सकता हैं। सरकारी अथवा निजी आयटीआय तंत्रनिकेतन संस्थाएँ कारपेंटर जैसे कोर्सेस चलाती हैं। उनकी ओर एक-दो साल का प्रशिक्षणार्थी कोर्स करके व्यवसाय का प्रशिक्षण ले सकते हैं अथवा फर्निचर तैयार करनेवाले किसी भी कारागीर के पास प्रत्यक्ष काम करके अनुभव ले सकते हैं।
लोहे का फर्निचर तैयार करने के लिए वेल्डींग मशिन, ड्रिलींग मशिन जैसी मशिनरी लगेगी, तो लकड़ी का फर्निचर तैयार करने के लिए बढई के काम की सामग्री लगेगी। सिर्फ फर्निचर तैयार करने का ही उद्योग परंतु बडे व्यापक प्रमाणे में करनेवाले हो तो फैब्रिकेशन के लिए लगनेवाली और बढई के काम के लिए लगनेवाली औजारें और सामग्री हमारे पास होना जरूरी हैं।
कारण फर्निचर तैयार करके लेने के लिए हमारे पास आनेवाला ग्राहक लोहे के अथवा लकड़ी के उसके पसंद के अनुसार माँग कर सकता हैं। लोहे के और लकड़ी के दो प्रकार की फर्निचर को वैसे लाँगलाईफ होती हैं। लकडी का सामान महँगा हो तो भी लकड़ी के सामान से तैयार किए हुए फर्निचर का दर्जा लोहे के फर्निचर को नहीं आता।
लकड़ी के फर्निचर पर हाथ (हस्त) कौशल से जो चाहिए उस प्रकार का डिझाईन निकाल सकते हैं। लोहे के फर्निचर मात्र घर के, दूकान के, ऑफिस के, सुविधा के अनुसार फोल्डींग के बना सकते हैं। जब चाहिए तब उसका उपयोग करो और जब नहीं चाहिए तब उसे फोल्ड करके रखो। घर में के मूल्यवान गहनें, मूल्यवान चिजें वगैरा रखने के लिए मात्र लोहे की तिजोरी, अलमारी इनका हमेशा उपयोग किया जाता हैं।
बेडरूम के लिए अथवा हॉल में (दिवाणखाने में), ऑफिस कार्यालय में लगनेवाली फर्निचर मात्र संभवत: लकडी के ही बनाये जाते हैं। दैनिक कामों मे जिनका अधिक उपयोग हैं ऐसे टेबल, कुर्सियाँ बर्तनें रखने की अलमारियाँ (कपाटे) ऐसी वस्तुएँ मात्र लोहे के सामान से ही बनाई जाती हैं। आजकल शादी-समारोह में वधू की ओर से वरपक्ष को तिजोरी, बेड, सोफासेट ऐसे फर्निचर भेंट देने की प्रथा तथा रिवाज हैं।
फर्निचर तैयार करने के वर्कशॉप के साथ ही फर्निचर बिक्री का आप का खुदका ही दूकान शुरू किया तो मात्र फायदा भी दोगुना मिलता हैं। और नामलौकिक भी बढता हैं। कारण खुद ही तैयार किया हुआ माल खुद के ही दुकान में बेचते वक्त थोडा अन्यों की अपेक्षा सस्ता बेचना संभव होता हैं।
अपने ही दूकान में माल की बिक्री करते वक्त ग्राहक की पसंद और आज की मार्केट की माँग और पसंद के अनुसार माल का उत्पादन करने से माल जल्दी बेचा जाता हैं। फलाना एक डिझाईन का फर्निचर और वह भी आपके ही दुकान में मिलता है ऐसा बोलबाला होता हैं।
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रॉ मटेरियल:
सागवान, सिक, जामुन की टिकनेवाली लकडियाँ, पॉलिश, डिझाईन के नमुने, लोहे के अँगल, पत्रा, रॉड, पट्टिया, तैयार डिझाईन्स, बढई के काम का और फैब्रिकेशन काम का सामान, औजारे, सुराही, हाथोडी, पक्कड, मारतूल आदि कच्चा माल लगेगा।
मशिनरी :
लकडी कट करने का (तोडने का) इलेक्ट्रिक कटर मशिन, वेल्डींग मशिन, ड्रिलींग मशिन ऐसी जरूरत के अनुसार बढई के काम की और लुहार काम की फैब्रिकेशन की यंत्रसामग्री लगेगी।