विश्व के आधुनिकीकरण के साथ भारत का भी आधुनिकीकरण हुआ। दुनिया में दुसरे नंबर की जनसंख्या होनेवाले भारत में औद्योगिकीकरण का विकास हुआ।
औद्योगिकीकरण के कारण देश में यातायात बढ गई। यातायात जैसी वाहतूक की सुविधा के साथ ही वाहनों की भी संख्या बहुत बढ गई। रास्ते विकास महामंडल ने किए रास्तों के चौपदरीकरण के साथ केंद्र सरकार की ग्रामीण विकास योजना के अंतर्गत ग्रामीण भागों में भी पक्की सडकों की एक तादाद निर्माण हुआ है।
गाँवो में राज्य परिवहन महामंडल के बसेस के अलावा जाने के लिए वाहन नहीं था। ऐसा चित्र बीस से पच्चीस साल पहले होता था। वहीं आज अनेक फोर व्हीलर वाहनों के साथ घर-घर में दोपहियों वाहनें दिखने लगे हैं। नौकरी, कामध व्यापार, व्यवसाय इनके लिए जैसे वाहनों को उपयागे होने लगा वैसे वाहन का उपयोग करना यह एक प्रतिष्ठा, फैशन समझने जाने के कारण वाहनों की आज बहुत संख्या दिखती हैं।
महानगरों में तो वाहनों की बहुत संख्या के कारण पार्किंग की समस्या महसूस होने लगी हैं। सरकारने तो ऐसा नियम बनाया हैं कि निवासी अथवा व्यापारी संकुल बाँधते वक्त पार्किंग के लिए राखीव जगह रखनी ही चाहिए, अन्यथा बाँधकाम की इजाजत दी नहीं जाती । वाहनें, वाहनों की संख्या और उनका पार्किंग इसके जैसी एक आधुनिक समस्या हमारे सामने निर्माण हुई हैं उसके साथ ही वाहनों के लिए लगनेवाला इंधन कहाँ से लायें? यह भी प्रश्न सरकार के सामने हैं।
टू व्हीलर, फोर व्हीलर वाहनों के लिए लगनेवाले कुल इंधनों में से करीबन सत्तर से अस्सी प्रतिशत इंधन हमारा देश आखाती देशों की ओर से आयात करता हैं। पेट्रोल, डिझेल, क्रूड ऑईल जैसी विविध इंधनों को अरब देशोंकी ओर से आयात करने के लिए हमारे देशको हजारों करोड़ों के परकीय चलन की जरूरत लगती हैं।
सिरिया यह हमारे देश का क्रुड ऑईल देनेवाला सबसे बड़ा आपूर्ति करनेवाला देश हैं। इराण, इराक, अफगाणिस्तान, कुवेत, दुबई इन आखाती देशों से आयात किए हुए इंधन पर हमारे देश की करीबन पचहत्तर प्रतिशत जरूरत पुरी होती हैं। प्राकृतिक प्राता से उपलब्ध होनेवाला यह इंधन एक दिन खत्म होनेवाला हैं ।
जमीन के गर्भ से अशुद्ध स्वरूप में खदानों से कच्चा तेल निकाला जाता हैं । उसपर प्रक्रिया करके शुद्ध तेल ब गया जाता हैं। जमीन के अंदर होनेवाला यह तेल का संचय मर्यादित स्वरूप का होने से वह एक दिन खत्म होनेवाला हैं । इसको पर्याय के रूप में इथेनॉल और बायो डिझेल जैसी इंधने तैयार की जाने लगी हैं। ऐसे मानव निर्मित इंधन के कारण विशेषत: प्रदूषण भी कम हो रहा हैं। पर्वत उतारों पर बंजर जमीन में हजारों एकडों पर आज बायोडिझेल के लिए लगनेवाले वनस्पतियों की रोपाई करके उनके बीजों से बायोडिझेल ब्रिकी के पंप डिझेल बिक्री करते हुए दिखाई देते हैं ।
शक्कर कारखानों में जैसा शक्कर और अल्कोहोल यह गन्ने पर प्रक्रिया करके बये जाते हैं। वैसे ही इथेनॉल-निर्मिती का प्रोजेक्ट है। इथेनॉल निर्मिती का अधिकतर शक्कर कारखानों ने प्रकल्प शुरू करके कुछ स्थानों पर निजी तत्त्व पर भी इथेनॉल निर्मिती प्रकल्प ने किए हुए हैं। केंद्र सरकारने पेट्रोल और डिझेल बिक्री करनेवाले पेट्रोल पंपों को प्रति लिटर दस प्रतिशत इथेनॉल का उपयोग करके बिक्री करने के लिए इजाजत दी हैं।
इथेनॉल निर्मिती प्रकल्प की यहाँ सिर्फ संक्षिप्त जानकारी दि गई हैं । तज्ञों से पुरे प्रकल्प का नियोजन करके उद्योग की शुरुवात कीजिए।
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मार्केट :
हर पेट्रोल पंप बिक्रेता को इथेनॉल बेचने आयेगा। इसके साथ ही इथेनॉल की बिक्री करनेवाले होलसेल व्यापारी और रिटेल व्यापारी भी हैं। उन्हें भी माल दे सकते हैं। प्रयोगशाला में भी इथेनॉल की आवश्यकता होती हैं।
रॉ मटेरियल :
शक्कर कारखानों में शक्कर और अल्कोहोल निर्मिती के लिए लगनेवाली सभी रासायनिक द्रव्ये यह कच्चा माल लगेगा।
मशिनरी :
इथेनॉल निर्मिती प्रकल्प यह एक बहुत बड़ा प्रोजेक्ट है। उस प्रोजेक्ट
को लगनेवाली पूरी यंत्रसामग्री कीमत और अन्य जानकारी इकठ्ठा कीजिए ।
इथेनॉल निर्मिती संपूर्ण माहिती कळवा
Ethenol ki puri jankari