इंधन यह आज की जागतिक समस्या है। मनुष्य के उत्पत्ति (निर्माण) से लेकर अन्न पकाने के लिए और अन्य अधिकतर उपयोगों के लिए प्राकृतिक लकडियों का उपयोग इंधन के रूप में किया जाता था। जंगल से लाए हुए सुखी लकडियों का उपयोग मनुष्य हजारों सालों से इंधन के रूप में कर रहा हैं और आज भी कर रहा हैं।
लकड़ी के साथ ही गोबर, भुसा, पत्थरी कोयला ऐसी प्राकृतिक इंधनों का उपयोग मनुष्य करता था। मनुष्य बदल गया, जग बदला, ऐतिहासिक कालों से आज तक हजारों बदलावों में से आज का आधुनिक मनुष्य निर्माण हुआ। ठंडी, धूप, हवा, बारिश इनसे शरीर की सुरक्षितता रखने के लिए मनुष्य प्राचिन काल में पेड़ों के पत्ते, जानवरों के चमडे, पेड़ों की छालों का उपयोग करता था।
गार के पत्थर से आग की निर्मिती करके जंगल में की सुखी लकडियाँ इंधन के रूप में उपयोग में लाता था। वहीं मनुष्य हजारों परिवर्तनों से निकलकर यातायात के लिए स्वयंचलित विमानों से लेकर क्षेपणास्त्रों तक का उपयोग करने लगा। आग से ऊर्जा प्राप्त करने की कला में प्रगति करके मनुष्य आज अणुऊर्जा का उपयोग करने लगा हैं।
विश्व के और मनुष्य के भी आधुनिकीकरण के साथ उसकी जरूरते भी बढ़ गई। विश्व की जनसंख्या भी अत्यंत तीव्र गति से बढ गई। परिणामत: इतनी बढी जनसंख्या को अनाज से इंधनों तक की बडी जरूरत महसूस होने लगी। मनुष्य ने जंगलो की अंधाधुंध कटाई करने के कारण पर्यावरण का संतुलन बिघड गया।
इंधन की जरूरत पूरी करने के लिए मनुष्य ने जमीन के अंदर से प्राकृतिक तेल ढूँढ लिए। घासलेट, डिझेल, पेट्रोल इस प्राकृतिक इंधन पर ही आज विश्व की बहुत-सी अर्थव्यवस्था टिकी हैं। परंतु ये जमीन के अंदर का इंधन संचय एक दिन खत्म होनेवाला ही है यह निश्चित है। तेलों की कीमतें बहुत बढ गई हैं।
आज अणुऊर्जा तो सामान्य मनुष्य की क्षमता के बाहर की बात हैं। शहरी और ग्रामीण भाग के लोगों की सस्ते में और हमेशा की जरूरत पूरी करने के लिए प्राकृतिक कोयले की (कांडी) भी निर्मिती हुई है। यह सस्ता और सबको आर्थिक दृष्टि से उचित लगनेवाला प्राकृतिक इंधन है।
कांडी कोयला तैयार करने के प्रकल्प शुरू करने के लिए सरकार की अधिकतर योजनाओं से कर्जरूप से अर्थसहायता भी मिलती हैं। कांडी कोयला तैयार करने के लिए जलने लायक फेंकनेदायक चीजों का चूरा, लकडी कोयले की राख, गोबर, पत्तियाँ, पत्थरी कोयले की भुकटी, काली मिट्टी ऐसा मिश्रण लेकर वह भिगोकर रखा जाता है।
बाजार में मशिनरी बेचनेवाले वितरकों के पास कांडी कोयला तैयार करने की यंत्रसामग्री मिलती है। वह भी लीजिए। भिगोकर रखा हुआ मिश्रण मशिनरी में कच्चे माल के रूप में डालिए। मशीन में की डाय के अनुसार अथवा आपको जो चाहिए उस आकार की, डिझाईन की डाय बिठाकर गोल गोले, कांडी, चपटी पट्टीयाँ, नलकांडी जैसी काँडियाँ इस पद्धति से कांडी कोयला तैयार कर सकते है।
मशिनरी उत्पादक मशिनरी बेचते वक्त उसका प्राथमिक प्रशिक्षण देते ही है। फिर भी आप उत्पादन शुरू करने के पूर्व कांडी कोयला उत्पादकों के प्रकल्प स्थान को प्रत्यक्ष देखकर अनुभव लीजिए अथवा प्रत्यक्ष काम करके प्रशिक्षण लीजिए।
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मार्केट :
बाजार में इंधन की कितनी कमी है और पेट्रोल, डिझेल, गैस जैसे इंधनों की कीमतें कितनी है यह हमारे रोज ही कानों पर आता है। इंधन निर्मिती का कोई भी व्यवसाय आज नुकसान में नहीं जा सकता। रसोई का गैस माँगने के साथ मिलता नहीं, राशन दुकानों से घासलेट (मिट्टी का तेल) करीबन गायब हुआ है। गैस की शेगडी सबको लेना संभव नहीं होता।
इक्कीस दिनों के बाद गैस मिलने के कारण इक्कीस दिनों के पूर्व गैस की टंकी खत्म हुई तो उसको विकल्प क्या? घासलेट तो मिलता ही नहीं। फिर भोजन कहाँ पर बनायेंगे? उसके लिए विकल्प एक ही कांडी कोयला और शेगडी। हर घर की जरूरत. होने से कम-से-कम इंधन निर्मिती उद्योगों मे ग्राहक ढूँढना नहीं पड़ता। तो ग्राहकही हमें ढूँढता हुआ आता हैं। कारण हम से ग्राहक ही अधिक जरूरतमंद होता है।
रॉ मटेरियल :
पत्तियाँ, गोबर, मिट्टी, जलानेवाली फेंकनेदायक चिजों का चूरा, पत्थरी कोयले की भुकटी, लकडी कोयले की राख, लकडी का बुरादा, धान का अथवा गेहूँ का बुरादा ऐसा सब जलानेवाला अंश या सभी जलनेवाली चींजे आदि कच्चा माल लगेगा।
मशिनरी :
अॅटोमेटिक कांडी कोयला तैयार करने का मशिन, बडा ग्राईंडर, कटर, दो एच.पी. मोटर, पैकिंग मशिन आदि मशिनरी लगेगी।