व्यवसाय या नौकरी? ( Business Vs Job )

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व्यवसाय क्यों करे?

सबसे पहले व्यवसाय क्यों करे?  इसके बारे में हमें सोचना चाहिए |   

हम व्यवसाय क्यों करे और नौकरी क्यों न ,इसके बारे में हमारे मन में जो संकल्प है उस संकल्प की एक बार जांच करनी चाहिए।

आज के भागदौड भरे अर्थात् आपाधापी के और भौतिक सुख के पीछे लगे हुए जमाने में अधिकतर लोग नौकरी को प्राधान्य देते है  |

नौकरी मे साधारण तौर पर आठ घंटे काम करते हैं और प्रति महीना एक निश्चित वेतन लेते है, जिसमें नफे-नुकसान की जिम्मेदारी कहीं भी नहीं रहती । आठ घंटे ड्यूटी करने पर अपना काम पूरा किया की हो गया, जिसमें कंपनी के फायदे-नुकसान से हमें कुछ लेना देना मतलब नहीं होता। महीने के एक निश्चित तारीख को वेतन मिलेगा, मिलने वाले वेतन से पारिवारिक खर्चा पूरा होगा।

फिर उद्योग-व्यवसाय में जाकर धोखा क्यों लें| इसी ही भावना में अधिकतर युवकों की नौकरी करने की उम्र भी ढल जाती है, लेकिन इनमें से उद्योग-व्यवसाय का विचार करने वाले लोग कम ही पाये जाते है।

नौकरी में फायदे-नुकसान कर धोखे का विचार करके अधिकतर अभिभावक (पालक) अपने  बच्चे की शिक्षा पूरी करते वक्त उस बच्चे बडे होकर क्या बनना चाहिए? कौन-सी नौकरी करनी चाहिए ? इसका पहले विचार करके शिक्षा देते वक्त उन्हें उसी क्षेत्र से संबंधित शिक्षा देते हैं।

अथवा उस क्षेत्र का डिप्लोमा, डिग्री कोर्सेस में दाखिला प्राप्त करने की कोशिश करते है।

बडे बनकर तुम्हे अमुक एक बनना है ऐसां बार-बार सुनाकर उसके मन पर वह क्षेत्र अंकित किया जाता है। अभिभावक अपनी अधूरी इच्छा-आकांक्षाओं को, अपेक्षाओं को बच्चों पर लादते हैं।

बच्चे की रूचि  क्या है? उनकी क्षमता क्या है? उन्हें वह करना संभव है क्या?

उच्च शिक्षा पूरी करने पर सबको अच्छी वेतनवाली नौकरी का विचार रहता है। लेकिन ऐसे कुछ इने-गिने लोग ही है कि जो जिस क्षेत्र की शिक्षा ली उस क्षेत्र में प्रगति, विकास करने की दृष्टी से, नया कुछ तो करने के लक्ष्य से, उस क्षेत्र में अनुसंधान अध्ययन करके नये प्रयोग करना चाहते हैं और इस बात के लिए अभिभावकों का संभवत: विरोध रहता है।

नौकरी को आज सामाजिक प्रतिष्ठा मिल चुकी है। फलाने किसी एक का लडका उस कंपनी मे इंजिनियर है और उसे फलाना इतना वेतन, इतना पकेज है

ऐसी चर्चा जब समाज में होती है, तब अपना लडका भी ऐसा ही इंजिनियर बने, ऐसा लगता है। उसे भी उतना ही वेतन मिलें इसलिए|अभिभावक अपने लडके की रुचि को ध्यान में न लेते हुए लड़कों को अपने सपने पूरे करने के लिए उनकी इच्छा के विरुद्ध अभिभावकों की मर्जी से ऐसी शिक्षाओं के लिए भेजा जाता है। परिणामतः अनैच्छिक शिक्षा क्षेत्र में करिअर करते समय लड़कों की दयनिय हालत हो जाती है।

अभिभावक अपने लड़कों को फलाना किसी का लडका यहाँ नौकरी करता है, फलाना किसी का लडका इतना वेतन पाता है ऐसे उदाहरण देते वक्त हम देखते हैं कि उस वक्त कोई धीरुभाई अंबानी, किर्लोस्कर, बजाज, टाटा, बिर्ला, लक्ष्मीनिवास मित्तल जैसे उद्योजकों ने किस तरह अपनी उन्नति की इसके उदाहरण नहीं देता।

खुद के विकास के साथ-साथ देश के विकास में जिन्होंने सराहनीय सहयोग दिया उन उद्योजकों के उदाहरण आज की पीढ़ी के सामने नहीं रखे जाते । परिणामत आज की युवा पीढ़ी नौकरी के पीछे लगी हुई दिखाई देती हैं।

इनमें से जिन्हें नौकरी मिलती नहीं, वह  नवयुवक निराश होकर गलत मार्ग को अपनाते हुए दिखाई देते हैं। निराशा के गर्दीश में खोये हुए दिखाई देते है। गुनाहगारी प्रवृत्ती के लोग ऐसे बेरोजगारों का फायदा उठाते हैं और हमारी भावी पीढी गुनाहगारी की ओर चली जाती है।

ऐसे बहुत-से उदाहरण हम समाज में देखते है। हमें उद्योग-व्यवसाय में प्रवेश करने के पूर्व हम व्यवसाय करें या नौकरी इसका दृढसंकल्प करना चाहिए।

व्यवसाय करें या नौकरी इस दुविधाजनक मानसिकता में कई गलत निर्णय न ले।

संभवतः व्यवसाय के शुरु में असफलता आयीं, तो नौकरी होती तो कितना अच्छा होता ऐसा विचार मन में आयेगा। मैं नया कुछ करूँगा ऐसा निश्चय हो, परंपरागत राह छोडकर नई राह दूंढते वक्त आनेवाले अच्छे-बुरे अनुभवों का सामना करने का साहस खुद में हो तो उद्योग-व्यवसाय की ओर जाना चाहिए।

नौकरी की अपेक्षा व्यवसाय क्यों?

तो व्यवसाय आपको देता है स्वतंत्रता और लक्ष! ये हम बाजार में खरीद नहीं सकते और उनकी कीमत भी नहीं लगा सकते।

नौकरी की गुलामी की अपेक्षा व्यवसाय की आजादी का अनुभव लें |

कुछ नया करने का ध्येय, निर्णय लेने की क्षमता, धन, प्रतिष्ठा पाने की अमर्याद आकांक्षाएं। अगर आपके पास हो तो अपने पैरों में जितनी शक्ती है, उतनी उडान भरने का मौका व्यवसाय में मिलता है । जिन्हें किसी के अधिकार में, गुलामी में काम करना संभव नहीं होता, प्रयत्नवादी स्वभाव होता है, जिनमें कष्ट करने की अपार क्षमता होती है, जिनकी शारिरिक तथा बौद्धिक कार्यक्षमता तीव्र होती है ऐसे लोगों को नौकरी के पीछे न लगते हुए उद्योग-व्यवसाय में खुद के नसीब को आजमाना चाहिए।

कोल्हू के बैल के समान, निश्चित साँचे में जीवन जीने की जिन्हे आदत होती है, थोडी-सी कमाई में जो खुश रहने का प्रयत्न करते है, कुएं की मेंढक की तरह जिन्हें जीवन बीताना होता है, उन्हें नौकरी ही करनी चाहिए ।

जिन्हे नवनिर्माण की इच्छा नहीं, नविनता की जिनमें लगन नहीं, संसार के परिवर्तनों से जिन्हें कुछ लेना-देना नहीं, जिनके सपने बड़े नहीं है, नया तंत्र ज्ञान प्राप्त करने की जिन्हें रुचि नहीं, दुनिया के सामने कुछ तो बड़ा करने का सपना नहीं, संसार के परिवर्तनों से जिन्हें कुछ लेना-देना नहीं ऐसों को व्यवसाय में न आते हुए नौकरी करना ही ठीक है।

क्योंकी व्यावसायिक सफलता की बुनियाद मेहनत, लक्ष्य, बड़े सपने इनपर आधारीत है। जिनके सपने नहीं, अपार मेहनत की तैयारी नहीं, जिनका मानसिक और सामाजिक विकास आत्मकेंद्री है उन्हे व्यवसाय में न जाकर नौकरी ही करनी चाहिए।

नये व्यवसाय में प्रवेश करते समय जिनका खानदान व्यावसायिक संदर्भ रखता है उन्हें नया व्यवसाय शुरु करते वक्त पुरानी पीढी से नई पीढी को प्राथमिक ज्ञान मिलता है। लेकिन जिनके खानदानों को व्यावसायकि सदर्भ नहीं है, उन्हें नया व्यवसाय शुरु करते वक्त व्यावसायिक प्रशिक्षण से लेकर बिक्री तक के नियोजन की तैयारी करके ही व्यवसाय की शुरुवात करनी पड़ती है । इसी कारण तो नवउद्योजकों को बहुत तैयारी करनी पड़ती है।

व्यवसाय-उद्योग शुरु करने से पहले जिस व्यवसाय की शुरुवात कर रहे है उस व्यवसाय में सफलता पायेंगे ही इस निश्चय से व्यवसाय में प्रवेश करना चाहिए।  फलता प्राप्त करनी ही है, तो उसके लिए पूर्व तैयारी करनी ही पडेगी।

हमारे घर में कोई विवाह कार्य हो तो उसका मंडप लगाने से लेकर आये हुए मेहमानों के स्वागत से लेकर खान-पान तक हमें कितनी तैयारी करनी पडती है यह हम जानते ही है। एक ही दिन होने वाले ऐसे विवाह कार्य के लिए करीबन महीना भर हमें तैयारी करनी पड़ती है।

हमें शिक्षा लेते वक्त वार्षिक इम्तेहान की तैयारी सालभर करनी ही पड़ती है। तो जिस व्यवसाय से हमें अपने लक्ष्य को प्राप्त करना होता है. खुद के लिए और नई पीढी के लिए सफलता प्राप्त करनेवाले होते है, सपनों की सफलता को हकीकत में उतारने के लिए उसकी पूर्व तैयारी करनी ही पडती है।

व्यवसाय करने का यदि हमारा निर्णय हो तो नौकरी यह विषय हमारे मन से पूर्णतः अलग करना होगा।

क्या करें? इसका फैसला जब तक नहीं होता तब तक उद्योग-व्यवसाय कभी भी शुरु नहीं करना चाहिए। व्यवसाय  या नौकरी इसका निर्णय करते वक्त सबसे पहले खुद की आर्थिक, मानसिक, बौद्धिक और शारिरीक मेहनत की क्षमता जाँचनी होगी।

नफे-नुकसान को सहने की आर्थिक क्षमता भले ही न हो तो कम से कम मानसिक क्षमता तो हमारे पास होनी चाहिए। और उतनी भी मानसिक क्षमता हमारे पास नही तो व्यवसाय न करना ही अच्छा है।

थोडी- सी असफलता मिलने पर सब कुछ खत्म हुआ ऐसी नकारात्मक मानसिकता हो तो उद्योग-व्यवसाय यह हमारा क्षेत्र नहीं ऐसा समझना चाहिए । ऐसी मानसिकता उद्योजकों के लिए हनिकारक होती है।

कुछ भी हुआ तो मैं सफलता प्राप्त करुंगा ही, यह लक्ष्य रखकर व्यवसाय की शुरुवात करनेवालों को असलफता क्यों आईं, इसका कारण ढूंढकर वह गलती सुधारकर नया करने की और असफलता को सहने की जिनमें शक्ति होती है वही लोग उद्योग-जगत में सफलताओं की बुलंदीयों को छूते हैं।

नये उद्योजक को विश्व के सामाजिक, आर्थिक ज्ञान के बारे में खुद को कितना ज्ञान है यह खुद जाँचकर देखना जरुरी है। सुनी-सूनाई जानकारी के आधार पर व्यवसाय में सफलता प्राप्त नहीं कर सकते।

खुद के पास जो ज्ञान और कौशल्य है उसका उचित मिलाफ करके उद्योग-व्यवसाय में सफलता पाने की कोशिश करनी चाहिए। किसी कारण से व्यवसाय में असफलता आईं तो उसका पछतावा करते हए बैठने की अपेक्षा, हुई गलतियो को सुधारकर नई प्रेरणा से काम की शुरुवात करनी चाहिए। कई बार शुरुवाती असफलता अगली सफलता की शुरुवात होती है।

हमारे पास जो ज्ञान और कौशल्य है उसका विचार करके खुद का आत्मपरिक्षण करना चाहिए। हमारे पास जो ज्ञान और कौशल्य है उसके सहारे उद्योग-व्यवसाय में कितनी सफलता पा सकते है इसका आत्मपरिक्षण करना चाहिए।

उद्योग-व्यवसाय करने की आपकी मूलतः रुचि है क्या यह जाँचकर देखना चाहिए? दुसरों को सफलता मिली, इसी कारण वह आपको भी  मिलेगी ऐसा नहीं। दुसरों की मिली सफलताओं के कारण खोजो। उन्होंने प्राप्त की सफलता  के रहस्य खोजो । उनका अध्ययन करो । जो ज्ञान हमारे पास नहीं है, लेकिन उद्योग-व्यवसाय के लिए जिसकी जरुरत है वह ज्ञान प्राप्त करें।

उद्योग-व्यवसाय शुरु करने पर मालिक के रुप में जीना होता है तब उस व्यवसाय की सफलता हासिल करने के लिए जो काम करेंगे उस काम के लिए समय का बंधन नहीं होगा। नौकरी में आठ घंटे काम करने पर अब हो गया ऐसी भावना होती है वैसी भावना व्यवसाय में रखकर नहीं चलेगा। काम पुरा होने तक काम करने की शारिरीक और मानसिक क्षमता हममें हो।

मेहनत के बिना संसार के किसी भी क्षेत्र के किसी भी चोटी तक पहुँच नहीं सकते। उदाहरण ही देना है तो एक दुकानदार सुबह आठ बजे दुकान खोलता है और रात नौ, दस, ग्यारह बजे तक उसके दुकान में जब तक ग्राहक है तब तक वह दुकान शुरु रखता है। आठ घंटे की ड्युटी की जगह पर वह तकरीबन बारह घंटे ड्युटी करता है । यहाँ यदि वह आठ ही घंटे दुकान शुरु रखेगा ऐसा कहेगा तो उसकी दुकान चलेगी नहीं ।

नौकरी में होनेवाले बंधन न हो इसलिए जब वह व्यापार शुरु करता हैं, तब उसे व्यवसाय की स्वतंत्रता भोगने के लिए, उसका इच्छित सपना और लक्ष्य तय करने के लिए जब तक उसकी दुकान में ग्राहक है तब तक दुकान में रुकना ही पड़ता हैं।

उद्योग-व्यवसाय में सफलता प्राप्त करके, सफलता की ऊँची चोटी तक पहुँचने के लिए खगोलशास्त्रज्ञ स्टीफन हॉकींग जैसा लक्ष्य रखना पड़ता हैं- जो इन्सान शरीर की कोई भी हालचाल नहीं कर सकता खुद के व्यक्तिगत काम खुद पुरे नहीं कर सकता, बोलना भी नही आता-ऐसे स्टीफन हॉकींग ने ब्रम्हांड की अनेक खोजे अपनी असीम लक्ष्य के बल पर लगाई ।

उनकी तरह इतना बड़ा ही क्यों न हो लेकीन जो क्षेत्र हमने चुना हैं उसके लिए तो समय देना, मेहनत और अध्ययन करना यह सब तो हमें करना ही पडेगा और यह सब करने की तैयारी हो तो ही उद्योग-व्यवसाय में सफलता मिलेगी। व्यवसाय या नौकरी? इसका निर्णय लेने के लिए भले ही समय लगने दो। लेकिन वह आपका अंतिम निर्णय होना चाहिए। क्योंकि एक बार निर्णय लेने पर लक्ष्य तक पहुचने के लिए हमें सभी प्रकार का नियोजन करके वह लक्ष्य प्राप्त करना होता है।

इसी कारण सोच-समझकर निर्णय लेना होगा। क्या करें? इसका ही निर्णय यदि नहीं हो रहा हो तो किस फैसले के लिए दुविधाजनक मानसिकता है उस क्षेत्र का गहरा और व्यावहारिकता के स्तर पर विचार करें। यह करूं या नहीं और मुझे वह संभव होगा या नहीं इस विचार में  आपका मन बँधा हो तो उस क्षेत्र के कुछ तज्ञ लोगों की सलाह लें, जिस क्षेत्र को चुनने का तय किया है|

जो उद्योग-व्यवसाय करने का हमारे मन में संकल्प है उस विषय से संबंधित साहित्य का अध्ययन करना चाहिए। उस क्षेत्र के उद्योग-व्यापारों के स्थानों को प्रत्यक्ष भेट देनी चाहिए। ऐसे मौके और मनुष्यों की खोज करनी चाहिए । क्यों कि ऊँचा लक्ष्य प्राप्त करने के लिए मदद करनेवाले मौके और मनुष्य हमेशा नहीं मिलते। ऐसे मौके और मनुष्य कभी कभी ही मिलते है।

मिलें अवसर (मौके ) का सदुपयोग करने का कौशल्य हममें हो । उद्योग-व्यापार में प्रवेश करते समय व्यावहारीक क्षमता होनी चाहिए । किसी एक मित्र ने फलाना व्यवसाय शुरु किया है इसलिए आप भी वहीं व्यवसाय मत चुने । क्योंकि आप अप्रत्यक्षरुप से उससे स्पर्धा करनेवाले होते है । स्पर्धा नहीं ऐसा विश्व में कोई भी व्यवसाय, कोई भी क्षेत्र नहीं है।

आज न दिखाई देने वाली, आज न होने वाली स्पर्धा कल हो सकती है या कल उसका अहसास हो सकता है। नौकरी करेंगे या व्यवसाय इसका फैसला करें और फैसला होते ही तैयारी में लगें। क्योंकि कृति शून्य फैसला न लिए हुए फैसले के समान होता है।

आलस को त्याग दो, समय का दुरुपयोग टालो, काम में लगो, यदि व्यवसाय शुरु करने का निर्णय हुआ हो तो अब कौन-सा व्यवसाय करेंगे इसका चयन करो ।

क्योंकि जो व्यवसाय करोगे उस की सफलता असफलता आपके करिअर से संबंधित होने के कारण उसमे आपका करिअर हो जायेगा और आपको जो संभव लगे ऐसा व्यवसाय चुन लें।

1 thought on “व्यवसाय या नौकरी? ( Business Vs Job )”

  1. मैं आपकी वेबसाइट को बहुत ही ज्यादा पसंद करता हूं, ऐसी वेबसाइट किसी की नहीं मिली अभी तक। और आपके ऑर्टिकल पढ़ने के बाद मैंने भीं ब्लॉग लिखाना शुरू किया हैं, क्या आप मेरी वेबसाइट देख कर बता सकते हैं। क्या मैं सही काम कर रहा हूं प्लीज़ मेरी मदद करें।

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