व्यावसायिक स्पर्धा नियोजन ( Business Competition & Planning )

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सफल उद्योजक होने के लिए व्यवसाय में होने वाले अन्य कंपनियों से स्पर्धा की कम-से-कम  मानसिक तैयारी नवउद्योजकों ने रखनी चाहिए । बड़े उद्देश्य पूरे करने के लिए, बड़े सपने वास्तव में लाने के लिए बाजार की स्पर्धा का अध्ययन करके वैसी पूर्व तैयारी करनी चाहिए।

 स्पर्धा नहीं ऐसा विश्व में आज तो एक भी क्षेत्र नहीं हैं। जग के आधुनिकीकरण के कारण उद्योगधंधो की भरमार होने से उद्योग-व्यवसाय में तो तीव्र स्पर्धा हैं और जिन्हें स्पर्धा का डर लगता हैं वे उद्योग-व्यवसाय में न जायें। स्पर्धा में भी अपना उत्पादन, अपना ब्रेन्ड हम बाजार में कैसे ले जायेंगे, उसका दर्जा कैसे रखेंगे इसकी उद्योग शुरु करने से पूर्व यदि उद्योजक ने अध्ययनपूर्ण तैयारी की हो तो उसे बहुत-सी स्पर्धा महसूस नहीं होगी।

 परंतु बाजार की व्यावसायिक स्पर्धा की कोई भी पूर्व तैयारी न करके यदि हमने अपना उत्पादन लेकर बिक्री के लिए बाजार में लेकर गये तो ब्रेन्डड उत्पादकों की स्पर्धा में हम टिकने की संभावना कम होती हैं।

व्यवसाय में चुनौतियो से घबराना नहीं चाहिए

 आपको उद्योग में सफलता पानी हैं तो आपको सभी प्रकार की चुनौतियाँ स्विकारने के लिए मानसिक दृष्टी से सक्षम होना जरुरी हैं। थोडी-सी असफलता से, छोटी-बड़ी व्यावसायिक समस्याओं के कारण घबरा जाने की, असमंजस में पड़ने की मनोवृत्ति रखनेवाले लोग व्यवसाय में बड़ी सफलता प्राप्त नहीं कर सकते ।

 अरबी घोड़े की तरह दूर का लक्ष्य (बड़ी सफलता) तय करने की मानसिकता और लक्ष्य रखनेवाले लोग ही उद्योग- व्यवसाय के विश्व में नाम कमा सकते हैं। स्पर्धा कहाँ नहीं हैं। संसार के,जीवन के,जीने के हर क्षेत्र में स्पर्धा हैं । इसी कारण स्पर्धा की तैयारी रखनी ही होगी।

 ध्येय और उद्देश्यों की निर्मिती होने के लिए स्पर्धा होनी ही चाहिए। स्पर्धा न हो तो नवीनता का जन्म नहीं होता। विकास की दिशातय नहीं होती, इसलिए स्पर्धा होनी ही चाहिए। परंतु वह स्पर्धा स्वच्छ, निष्कपट और निष्कलंक होनी चाहिए । छोटे बच्चे और बड़े विद्यार्थी इनमें भी स्पर्धा होती हैं।

 स्पर्धा नहीं है ऐसा क्षेत्र ढूँढ़कर भी नहीं मिलेगा। नौकरी में पदोन्नती की, व्यापार में बिक्री की, परीक्षा में अधिक अंक प्राप्त करने की, रास्ते पर टू व्हीलर वाहन चलाते वक्त भी बारीकी से निरीक्षण करो, पिछे का वाहन चालक आगे के वाहन के आगे जाने की स्पर्धा में होता हैं।

 स्पर्धा कहाँ नहीं हैं? स्पर्धा न हो तो नया कुछ करने का हौसला ही नहीं रहेगा। मनुष्य जहाँ हैं, वहीं रहता हैं। मुझे कोई स्पर्धक नहीं इसलिए वह कुछ करने के फंदे में नही पड़ता, जहाँ हैं, वहीं बेसावधान रहता हैं। और अचानक एखादं दिन कोई तो अधिक क्षमतावाला स्पर्धक आता हैं। और हमें अपने क्षेत्र से अप्रत्यक्ष रुप में निकाल देता हैं ।

वह अपने क्षेत्रपर अपना वर्चस्व प्रस्थापित करता हैं। तब हमारे पास देखते रहने के अलावा कोई पर्याय (विकल्प) नहीं रहता। इसलिए नविनता को लक्ष्य रखकर जिस क्षेत्र में है, उस क्षेत्र में नया कुछ करते रहो। नया तंत्रज्ञान, नयी कल्पना, नविनता को स्विकार करो और व्यवसाय में भी और जीवन में भी परिवर्तन करवाओं जीवन यह मूलतः एक स्पर्धा हैं। जीवन जीने की, स्पर्धा में टिकने की कला, तंत्रज्ञान और कौशल प्राप्त करो ।

 यदि स्पर्धा नहीं हैं ऐसा एखादं उद्योग, व्यवसाय चुना और वह शुरु किया तो, उस व्यवसाय में आज नहीं तो कल भी स्पर्धक निर्माण नहीं होगा, ऐसी गलतफहमी में बेसावधान मत रहो । व्यवसाय के खोज में होनेवाले लोग नई-नई तरकीबें ढूँढ़ते हैं । कोई नया व्यवसाय शुरु करने के लिए इच्छुक होनेवाले लोग बाजार का संशोधन करते हैं ।

 बाजार का अध्ययन करते हैं, जिसे मार्केट रिसर्च’ कहा जाता हैं । ऐसे लोग बाजार में स्पर्धा न होनेवाले व्यवसाय की खोज लेते हैं। व्यवसाय । उद्योग की नवनिर्मिती करने का ढाढ़स अधिकतर लोगों के पास नहीं होता । नया कुछ तो करके देखिए । रोजगार की नवनिर्मिती कीजिए ।

 अपने लिए रोजगार की निर्मिती करते वक्त उसके साथ ही समाज के लिए भी रोजगार निर्माण किया जाएँ। ऐसी इच्छा सबकी नहीं होती। इसी कारण दूसरे ने शुरु किए हुए व्यवसाय की लोग नकल करते हैं।

व्यवसाय में किसी दूसरे व्यापर की डुप्लीकेशन नहीं करनी चाहिए

 डुप्लीकेशन करने का शॉर्टकट बहुत – से लोग ढूँढ़ते हैं । हम हमेशा ही देखते हैं कि, एखादं व्यक्ति ने अपने गाँव में न होनेवाला कोई अपारंपारिक व्यवसाय शुरु किया और उसका व्यवसाय अच्छी तरह से चला तो चार-छह महीने में उसी बाजार में उसके आसपास उसी व्यवसाय की नई तीन-चार दुकानें शुरु होती हैं । ऐसा क्यों? तो उसका व्यवसाय चलता हैं मतलब अपना भी व्यवसाय चलेगा इसकी निश्चिती होती हैं।

 परंतु सीमित ग्राहकों का बाजार हो तो ऐसी एक-दूसरे से स्पर्धा करने के कारण सबके व्यवसाय चलेंगे लेकीन एक सिमा तक ही चलेंगे । क्यों कि उस बाजार में होनेवाला ग्राहक मर्यादित, लिमिटेड होता हैं। उतना ही ग्राहक अलग अलग दूकानों मे विभाजीत होता है और सबका व्यापार एक मर्यादा में होता हैं ।

बड़ा लक्ष्य,बड़ा उद्देश्य, बड़े सपने हो तो डुपिलीकेशन करने के पीछे मत लगो। नया कुछ तो ढूंढो । जहाँ चाह हैं, वहाँ राह है।ढूंढो मतलब मिलेगा। नया कुछ तो करने का ढ़ाढ़स करो। भेड़-बकरियों के काँरवे की तरह भेड़-बकरियों की तरह एक के पीछे एक दौड़ेने की अपेक्षा प्रवाह के विरुद्ध तैरना सीखो ।

 एक का व्यवसाय-उद्योग चलता हैं इसलिए उसके पड़ोस मे ही वहीं व्यवसाय शुरु करना इसे ‘कपटी स्पर्धा’अथवा द्वेष की स्पर्धा कहते हैं। व्यवसाय में ही नहीं जीवन के हर क्षेत्र में स्पर्धा हैं। स्पर्धा नही ऐसा गाँव, शहर अथवा संसार का कोई भी देश नहीं हैं।

स्पर्धा से घबराना नहीं चाहिए

 व्यावसायिक स्पर्धा, सामाजिक स्पर्धा, राजकीय स्पर्धा ऐसी सभी प्रकार की स्पर्धाएँ सर्वत्र हैं। प्रकृति भी इसके लिए अपवाद नहीं हैं। प्रकृति का हर प्राणी, पक्षी, वनस्पती, जीव-जंतूएँ जीने की स्पर्धा में हैं।

 जो स्पर्धा में नहीं टिकता वह खत्म होता हैं, यह प्रकृति का नियम हैं। स्पर्धा के बिना वैसे विकास भी नहीं होता। जब हमसे किसी की स्पर्धा नहीं हैं यह मनुष्य के ध्यान में आता हैं तब वह अहंकारी और आलसी बनता हैं।

 जीवन में और व्यापार व्यवसाय में वह आलस्य से, अंहकार से बेसावधान होता हैं । जग के बदल के अनुसार खुद में, अपने उत्पादन में, उसकी गुणात्मकता में, कीमत में, पैकींग में, विज्ञापनों में अहंकारी व्यापारी बदल करना नहीं चाहता ।

मुझसे कोई भी टक्कर नहीं ले सकता, मेरे उत्पादन से कोई भी स्पर्धा कर नहीं सकता ऐसे भ्रम में वह रहता हैं और एक दिन कोई नया ही ब्रेन्ड बाजार में धमाके से प्रवेश करता है और उसके आने से ही आलसी, अहंकारीव्यापारी अपना उत्पादन और कंपनी लेकर नुकसान कीखाई में डूबता हैं।

 स्पर्धाको मत घबराओ। स्पर्धा न हो तो व्यापार व्यवसाया में ध्यान नहीं लगता। व्यापार और हम भी आपमतलबी हो जाते हैं। आपको जो करना है, जो प्राप्त करना है वह करते वक्त, वहाँ जाते वक्त भीड़ से, स्पर्धा से मत घबराओ।

हमें मिलनेवाले अवसर, मौके हमेशा नहीं मिलते इसका विचार करो।आया हुआ मौका मत गवाओ। समझो, हम ट्रेन से किसी महत्वपूर्ण काम के लिए किसी गाँव जानेवाले हो तो उस गाँव को जानेवाली ट्रेन को बहुत भीड़ होगी तो आप क्या करेंगे? उसी ट्रेन से जायेंगे की उसे छोड देंगे, वैसा ही मिलनेवाले मौके का और स्पर्धा का हैं।

 मार्केट में बहुत ही स्पर्धा हैं। इसलिए मिलनेवाले मौके को खोना नहीं। स्पर्धा का सामना करो। स्पर्धा से खुद के लिए स्थान और जगह निर्माण करो । जानकारी-तंत्रज्ञान का दालन आज सबके लिए सदैव खुला है। आज बहुत-से मौके उपलब्ध हैं।

 जिस व्यवसाय में प्रवेश करना है, उसमें प्रवेश करने के पूर्व ही सब तैयारी करो। जिंदगीभर जिसव्यवसाय से जीने का मार्ग आजिवीका का साधन, खुद का और परिवार का गुजारा चलाने के लिए हम उत्पन्न प्राप्त करनेवाले हैं उसकी पूर्व तैयारी करनी ही चाहिए।

 आज नहीं तो कल कोई तो हमसे स्पर्धा करेगा ही ऐसी मानसिक तैयारी करके उद्योग की शुरुआत करो। स्पर्धा होगी तो ही आप नया कुछ करने का हौसला रखेंगे । व्यवसाय की ओर पूरा ध्यान दो ।

 स्पर्धा न हो तो, नविनता का जन्म नहीं होता । विकास को, प्रगति को सहायता नहीं होती । इसके लिए बाजार की माँग, पसंद, आपूर्ति इनका हमेशा अध्ययन करते रहों । बाजार के परिवर्तनो पर ध्यान रखो । कल के अनुरुप माल की कीमत, पैकींग, प्रसिद्धी, तंत्र बदलो ।

 उत्पादन का और बिक्री का कार्यक्षेत्र, विस्तार, व्यापकता बढ़ाओ।संसार के बदल के अनुसार ग्राहकों की पसंद के अनुसार जरुरत हों तब उत्पादित माल के ब्रेन्ड को नया रुप दो । प्राप्त हुए रास्ते से न जाते हुए हिम्मत हो, ढ़ाढ़स हो, कुछ कर दिखाने का हौसला हों तो नई दिशा ढूँढो ।

 ध्यान में रखो सफलता यह सदैव आपसे छिपी नहीं रह सकती। सफलता मिलेगी ही क्योंकि उसकी निर्मिती ही आपके लिए हुई होती हैं।

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