भारत के आधुनिकीकरण के कारण भारतीय लोगों का जीवनस्तर बहुत मात्रा में उच्चस्तरीय हुआ हैं। पत्थर-मिट्टी के पारंपरिक घर जाकर उस स्थान पर सिमेंट काँक्रीट के और ईटों के घर आये हैं। बहुत बड़े प्रमाण में शहर में और ग्रामीण भाग में भी नए बाँधकाम निर्माण हुए हैं। शहरों का विस्तार भी बढा हैं।
बेरोजगारों का शहरों में कामधंधा ढूँढकर शहरों में वास्तव्य करना दिखाई दे रहा हैं। परिणामत: शहर में बडी जनसंख्या का रहने का प्रश्न निर्माण हुआ। बहुमंझिली इमारतों में रहने की सुविधा होने लगी। फ्लॅट संस्कृति का उदय हुआ। बडे-बडे बाँधकामों के लिए ईंटों की प्रचंड माँग बढी।
यह माँग बढने के कारण ईंटभट्टी उद्योगों को अच्छे दिन आए। प्राचिन काल में सिर्फ ग्रामीण भागों में ही ईंटभट्टियाँ होती थी। परंतु आज हर शहर के आसपास ऐसी ईंटभट्टीयाँ होकर भी बाँधकाम के लिए ईंटों की कमी महसूस होती हैं कारण सर्वत्र बहुत बाँधकाम हो रहा हैं। मिट्टीसे निर्माण की हुई भुनी हुई अथवा कच्चे ईंटों के घर प्राचीन काल में थे, परंतु अब पारंपरिक बाँधकाम की पद्धति ही बंद होने से भुनी हुई ईंटें, सिमेंट ब्लॉक ईंट, ठोकला सिमेंट ईंटें, बडी भुनी हुई ईंटों की निर्मिती हो रही हैं।
लघुउद्योग के रुप में ईंटभट्टी उद्योग देश के हर भाग में किया जाता हैं। अच्छे दर्जे की मिट्टी लाकर वह मिट्टी कुछ दिन भिगोकर उसका किचड तैयार किया जाता हैं। गन्ने के ऊपरी भाग पर के पत्ते, (पाचट) चिपाड अथवा गेहूँ का, धान का भुसा इसे एकत्र मिश्रण करके यह मिट्टी रौंदी जाती हैं।
ऐसी मिट्टी संभवत: नदी पात्र से लाई जाती हैं। ऐसी मिट्टी रौंदकर उस किचड को उचित आयताकृति आकार दिया जाता हैं। पत्थरी कोयला और ज्वलनशील पदार्थ डालकर ऐसी भट्टियाँ जलाई जाती हैं और उसमें कच्ची ईंटे भुनकर पक्की भुनी हुई ईंटें तैयार की जाती हैं। पारंपरिक रीति से परंतु शास्त्रशुद्ध पद्धति से ऐसी ईंटभट्टीयों की बांधनी की जाती हैं।
आमतौरपर ऐसी पारंपरिक प्राचिन काल से चली आयी हुई पद्धति से ईंटें बनाई जाती हैं; परंतु फिलहाल आधुनिक स्वयंचलित ऐसी यंत्रे भी आयी हैं। ऐसी यंत्रें मिट्टी से किचड तैयार करके ईंटों को आकार देने तक काम करती हैं। ऐसी ईंटे उच्च क्षमता की विद्युत भट्टी में भूनि जाती हैं। ऐसी आधुनिक पद्धति से ईंटें तैयार करना वैसे लघुउद्योजकों को महँगा हैं, परंतु बिक्री क्षेत्र बडा हो और आर्थिक नियोजन हो तो ऐसी आधुनिक ईंट भट्टियाँ लगाने के लिए कोई हर्ज नहीं।
ईंटों को आकार देने के काम के लिए हँडमोल्डेड मशिनरी भी आज बाजार में उपलब्ध हैं। घर बाँधने के लिए ईंटों की जरूरत होती ही हैं। कम भांडवल में परंतु ज्यादा मेहनत करने की तैयारी होनेवाले नवउद्योजक बेरोजगारों ने यह व्यवसाय अवश्य चुनना चाहिए। भट्टी लगाते वक्त शास्त्रशुद्ध जानकारी लेकर लगाईए अथवा तज्ञ प्रशिक्षित लोगों की ओर से भट्टी लगाकर ली और कच्चे ईंटों की प्राकृतिक आपत्ति से मतलब बारिश से रक्षा की तो वैसे इस व्यवसाय में नुकसान होने की संभावना नहीं हैं।
पाँच से दस लोगों का परिवार हो तो घर के सभी लोगों ने ईंट-भट्टीपर काम किया तो सबको रोजगार प्राप्त करके देनेवाला यह व्यवसाय हैं।
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मार्केट :
ईंटभट्टी उद्योग के लिए ग्राहक ढूँढना नहीं पडता यह उसका वैशिष्ट्य हैं। कारण जिन्हे घर बाँधना हैं, वे लोग प्रत्यक्ष में ईंटें खरीदने के लिए ईंटभट्टीपर आते हैं। बड़ी-बड़ी इमारतें बाँधनेवाले इंजिनियर्स, कॉन्ट्रॅक्टर्स, बिल्डर्स ईंट भट्टी पर ही माल पहले ॲअॅडव्हान्स देकर बुकींग करते हैं। ईंट भट्टी उत्पादक की ओर से ईंटें खरीदकर उसका डिपो करके माँग बढ़ने के बाद अधिक कीमत से ईंटें बेचने का धंदा करनेवाले होलसेल व्यापारी भी ईंट भट्टी उत्पादकों का बडा ग्राहक हैं।
रॉ मटेरियल:
मिट्टी, पत्थर, कोयला, भूसा, पानी आदि कच्चा माल लगेगा।
मशिनरी :
हँडप्रेस मशिन, ईंटों को आकार देनेवाले हँडमोल्डेड अथवा स्वयंचलीत मशिनरी मिलती हैं। ईंट की यातायात और मिट्टी लाने के लिए ट्रॅक्टर जैसा वाहन, पानी की मोटर, बोअरवेल, कोयला क्रशर आदि मशिनरी लगती हैं।